लेखक की कलम से

मोर गांव ह शहर होगे …

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मोर गांव ह शहर होगे,तरिया,नरवा नहर होगे।

कति आंव,कति जांव,चारो मुड़ा म डहर होगे।।

 

राम रमायन जाने नहीं, मरयादा ल माने नहीं।

संस्कार के नाम बुतागे,छोटे बड़े ल जाने नहीं।।

का बतावंव रे संगवारी,भाखा बोली जहर होगे-

 

कमइया किसानी भुलगे,खेत म फैक्टरी खुलगे।

करजा के मारे समारू ह,घरेच म फांसी झुलगे।।

जेती देखबे तेती संगी,जिनगी ह अलकहर होगे-

 

गली म चिखला माते,कोलाबारी म टाइल्स होगे।

उठुवा कुरता- डुठुवा पैंट,जिंस ह स्टाइल्स होगे।

बड़े फजर के राम रमौवा,अब नोहर-सोहर होगे-

 

उमर के पहिली बेटी बेटा,देखव तो जवान होगे।

दाई ददा घर के कमैया,बेटा घर के सियान होगे।।

जम्मो काम बुता भुलागे,मोबाइल के लहर होगे-

 

खेत -खार ल बेच-बेच,बिहाव अउ छट्ठी करत हे।

बड़े गौटिया काहत लागे,भिखारी बनके मरत हे।।

अन्नपूर्णा माटी बंजर होगे,पानी घलक जहर होगे-

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)             

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