लेखक की कलम से

आ ना पाऊंगी……..

आ ना पाऊंगी
सुन माँ कुछ उदास हो गई
पापा भी कुछ शांत हो गए
कैसे कहूँ कि घिर गई हूँ
ज़िम्मेदारियों के बोझ तले
जिस घर की मैं थी लाड़ली
वहाँ अब बन गई मेहमान
कुछ दिन को आ जाती हूँ
दहिया छू लौट आती हूँ
कैसे अब बतलाऊँ मैं
कैसे अधिकार दिखाऊं मैं
घर की बेटी पराई हो गई
जिस दिन से विदाई हो गई
जिस घर की मैं रानी थी
वहाँ आज्ञा लेकर आती हूँ
मन करता है उड़ जाऊँ मैं
तुम्हारे पास आ जाऊँ मैं
माँ पापा की छत्रछाया में
पहले की तरह रम जाऊँ मैं
अब वो बात कहाँ
अब वो दिन कहाँ
बंट गई हूँ टुकड़ों में
जीवन की रस्मों में
याद आती है गोदी की माँ
याद आती है पापा की माँ
मेरी बातों से जो तू हँसती थी
मेरे बहानों से जो तू फँसती थी
तेरे हाथ की बनी वो तहरी
जो मुझसे ना बन पाती है
पापा के साथ वाद विवाद ….
सब छूट गया …….

©ऋचा सिन्हा, नवी मुंबई, महाराष्ट्र

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