लेखक की कलम से
कटी पतंग…
जिंदगी मानों कटी पतंग हो गई,
जिनसे चाहत थी,
आज उनसे मेरी जंग हो गई ।।
हमनें तो दुआओं में भी, सिर्फ उन्हें माँगा था।
जिंदगी चाही थी,उनसे ,जान नहीं माँगा था।।
क्या कहूँ किससे, आज जिंदगी भी तंग हो गई—
अपने जीवन की डोर हमने,उसको दिया था।
दिल के बदले में सिर्फ, दिल ही तो लिया था।।
पतंग से कटकर, इस डोर की, नई जंग हो गई—
माना की सारा ,आसमां है,अब मेरे हिस्से में।
दर्द इतना है कि,मैं नहीं अब उनके किस्से में।।
उड़ने की उम्मीद भी,मानों आँसुओं के संग हो गई—
©श्रवण कुमार साहू, “प्रखर” राजिम, गरियाबंद छत्तीसगढ़