लेखक की कलम से
तट …
ये गंगा-यमुना का तट…
जहां बहते थे फूल,पत्ते,बेल,बूटे!
जहाँ स्नान करते थे जन-जन!
जहां मंत्रोच्चारण करते थे सज्जन!
ये गंगा-यमुना का तट…
जहां उषाकाल में पड़ती सूर्य की अरुणिक किरण!
जहां प्रभाती गाते थे भक्तजन!
जहां मुक्ति गीत गाते थे संतजन!
जहां की क्यारियों पर कवियों के होते ध्यान!
कितनी ही रचनाओं का बना उद्गम स्थान!
कितनी ही गाथाओं का बना साक्षी निदान!
कितनी ही सभ्यता,संस्कृति का बना संधान!
अनगिनत पलों का है ये रहस्य-खान!
पर आज इनकी तटों पर शवों के भरमार!
चील,कौओ का बना आहार स्थान!
नहीं इनके परिजन साथ!
अनाथ,लाचार शव पर नहीं कोई अश्रु
बहाता!
नहीं सजतीं इनकी चिताएँ आज!
महामारी ने सच में मानवता को किया शर्मशार!
गंगा-यमुना के तटों पर अनाथ शवों के दृश्य ने किया हृदय विदीर्ण…
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता