सुनो ना…
इक राज़ की बात हम तुम्हें बताने लगे हैं,
आजकल अपनी ही बनाई दुनिया में,
तेरे संग वक़्त बिताने लगे हैं।
तेरे ही ख्यालों में डूब,
दुनिया से बेखबर हो बात-बेबात मुस्कुराने लगे हैं।
अब क्या ही कहें,
तेरी किसी आहट पर दिल धड़क जाने लगे हैं।
तेरी किसी शरारत पर चेहरा शर्म से लाल हो जाने लगा है,
तेरी किसी सरगोशी पर जज़्बात मचल जाने लगे हैं।
तू एक पल को न दिखे तो,
आंखों से अश्क़ हम बहाने लगे हैं।
हम तेरे और तू सिर्फ हमारा है,
ये सोच के खुद पर इतराने लगे हैं।
तू बसने लगा है कहीं भीतर ही हमारे,
ऐसा क्यों है?
अब ये सवाल सताने लगे हैं।
कौन है तू? क्या रिश्ता है तुझसे,
ये सोच सोच हम परेशान हो जाने लगे हैं।
सुनो ना,
आज हम तुम्हें अपने दिल के जज़्बात,
कुछ इस अंदाज़ में सुनाने लगे हैं।
©मीनाक्षी मोहन ‘मीता’, पंचकूला, हरियाणा
परिचय- दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिन्दी में एमए, बीएड, अध्यापन कार्य, हिन्दी विभागाध्यक्ष, कविता-कहानी, लघु नाटक लिखना, सकारात्मक सोच।