लेखक की कलम से

मन नइ करे फकीर …

काबर टीका लगाए हावस,चंदन के सादा-सादा।

तेहा काबर निभाए नहीं,अपन गुरु से करे वादा।।

 

गर म पहिरे कंठी माला,मुँह से कहे कबीर जी।

तै मनमाने तन ल धोवे,मन नइ करे फकीर जी।।

फकत कपड़ा पहिरे हावस,काये बर सादा-सादा–

 

मुर्दा ल छुए के पाछु म,तै घर आके नहावत हस।

कुकरी के पुजवन करके,माई पिला खावत हस।।

मुँहू म राम-राम कहिथस,कसाई के रखे इरादा—

 

पथरा के पूजा करे अउ,दाइ-ददा तरसावत हस।

गंगाजल ल लात मारे,दारू  रोज ढरकावत हस।।

रामायण पढ़त हावस,हरकत  रावण ले जियादा–

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)             

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