माँ घर की है शीतल काया …
माँ घर की है, कोमल छाया!
तेज धूप नहीं, शीतल काया!!
बचपन जिसकी छांव में बीता!
ऐसा बटवृक्ष कहीं न दूजा!!
ममता को आंचल में बांधे !
स्नेह,आदर्श के भावों को साधे!!
माँ घर की है कोमल छाया!
तेज धूप नहीं, शीतल काया!!
मां की ममता में देवालय पाया!
उसकी संगति में सद्गुण अपनाया!!
गीता के कर्म-फल को गाया!
रामायण को प्रतिदिन ध्याया!!
माँ घर की है, कोमल छाया!
तेज धूप नहीं, शीतल काया!!
भागवत का श्रवण कराकर!
धूप, दीप, घंटा, बत्ती ,ध्वनि से!!
जीवन को अद्भुत मंत्रों से सजाया!
तुलसी को आंगन में बिठाकर!!
दीप भक्ति का दिल में जलाया!
माँ घर की है, कोमल छाया!!
तेज धूप नहीं, शीतल काया!
माँ की मूरत में अलौकिक आभा!!
दुख की पडती तनिक न छाया !
हल हो जाती समस्त आपदा!!
माँ अनुभव की परम पाया!
मां घर की है, कोमल छाया !!
तेज धूप नहीं , शीतल काया!
जीवन में सर्वस्व अपना कर !!
मां के चरणों में श्रद्ध-शीश नवाकर!
हर मुश्किल को सहज ही पाया!!
चंदन युक्त जीवन महकाया!
मां घर की है, कोमल छाया!!
तेज धूप नहीं , शीतल काया!
मैंने मां के चरण कमलों में !
मंदिर – मस्जिद का सुख पाया !!
जीवन के नैतिक मूल्यों को !
परम अंग जीवन का बनाया!!
माँ घर की है अनुपम छाया !
तेज धूप नहीं शीतल काया!!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता