लेखक की कलम से

मैं डूब जाना चाहती हूं…..

मैं डूर जाना चाहती हूं
कविता की बांह थामे….

जीवन अदृश्य समुद्रीय ज्वार में
आत्मसात करना चाहती हूं,
कविता की बांह थामे…..

मै ग्रहों से उपग्रहों में
निमग्न होना चाहती हूं,
कविता की वाहन थामें….

क्षितिज की अंतिम छोर
स्पर्श करना चाहिए हूँ,
कविता की बांह थामें….

अदृश्य पटरियों को पार करते
अदृश्य ट्रेन की सवारी करना चाहती हूँ,
कविता की बाह थामे….

मैं अदृश्य असीम में अदृश्य
आत्मा को विसर्जित करना चाहती हूं,
कविता बाह थामे…

मैं डूब जाना चाहती हूं
कविता की बाह थामे…..

©अल्पना सिंह, शिक्षिका कोलकाता       

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