लेखक की कलम से

परदेसी ….

 

दूर देश से आने बाले

अब तो आजा,

सूना हो गया श्रँगार मेरा

अब तो आजा।

 

मेरी बिंदीया तेरी नजरिया

मांग सिन्दूरी तेरी दुलहनिया,

हाथो की चूडियां तूझे बुलाये,

अब तो आ जा अब तो आ जा।

 

झुमके के घुंघरू तेरी गलयआ,

नैनो का कजरा तेरी बलैया,

पेरौ की पायलिया तुझे बुलाये,

अब तो आजा अब तो आजा।

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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