लेखक की कलम से

जवाब चाहिए मुझे. . .

आज समाज में जिसतरह का माहौल बनता जा रहा है यहां कोई भी मां बाप ऐसे नहीं हैं जो अपने बच्चों के घर से बाहर जाने पर चिन्तित न हों, अगर समय ज्यादा लग जाए तो वो बेचैन हो उठते हैं उनकी सुरक्षा के प्रति, दिमाग में बुरे-बुरे खयाल आने लगते हैं क्यों पता है ? माहौल खराब है। किसने बिगाड़ा है माहौल ? हमारे और आपके बीच से ही तो हैं ये लोग जो समाज को गन्दा करते हैं तीन महीने की बच्ची से लेकर 75 साल की बूढ़ी औरत भी सुरक्षित नहीं है। हैवानों को सिर्फ जिस्म की भूख है। कानून भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि ज्यादातर मामले तो इज्जत की डर से छिपा दिये जाते हैं और जो सामने आ भी जाते हैं तो न्याय मिलता है लेकिन इससे क्या मिलता है पीड़ित को उसका जीवन तो बर्बाद हो चुका होता है क्यों नहीं हम खुद न्याय का बीड़ा उठायें। जिस रावण ने कभी सीता को छुआ भी नहीं उसे बुराई का प्रतीक कहकर हर साल जलाते हैं और अपने समाज के इन भेड़ियों को जलाने की हिम्मत नहीं हममे क्यों आखिर क्यों मुझे जवाब चाहिए आपसे और इस न्याय व्यवस्था से. . .

©ममता गर्ग, ठाकुरगंज, लखनऊ, उत्तरप्रदेश

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