लेखक की कलम से
यही बसंत है…
कविता
मैं
एक ठूँठ -सी
जीवन -जंगल में
महसूसती हूँ
नितांत नकारात्मकता ।
देखती हूँ
सूखे पेड़
सूखी टहनियाँ
बिखरे फूल
बिछड़े पत्ते
वीरान वन मन
पतझड़ ही पतझड़ ।
उड़ता है एक दिन
कोई सुनहरा पंछी
रंग -बिरंगे
तोते, तितलियाँ
कबूतर -जोड़ा
चिड़िया, कोयल
बैठती है गिलहरी
मेरे पास आ कर
और उमड़ता है
मन में विश्वास
जीवंतता का ।
अगली सुबह
पाती हूँ मैं
दिल की जड़ों में
फूट आई है
कोई कोंपल
यही बसंत है
जीवन बसंत ।
©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़