लेखक की कलम से
पौष का सबेरा मुबारक
कुंडली ऐसी बनाई रब ने दुख सुख की लड़ियां पिरोकर
दुख के अंधेरे में सुख की रौशनी चांद सूरज सा लगता है
ताप जिंदगी का समय के चक्र से पिघलता है
ढूंढते रहे जिसे हर क्षण बैठा वो वक्त की कड़ियां पिरोकर
गुत्थियां सुलझ जातीं गर खाहिसें आसमां न छूतीं!
- लता प्रासर