लेखक की कलम से

आया बसंत…

उषा निशा को छोड़ चली

किरणों से आकर गले लगी

चितचोर बसंत मदमाता रहा

हवा को गले लगाता रहा

रिमझिम फुहार लाया बहार

मौसम का वह बना कहार

चहुंओर मचलता उर देखा

हर उम्र को यहां फिसलते देखा

हौले-हौले सूरज धरती को चूमेगा

सब जीव बसंत की मस्ती में खूब झूमेगा

कुछ मन का रंग कुछ तन का रंग

आज धरा पर निखरेगा!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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