लेखक की कलम से
तुम सा प्रेम…
लोक लाज तजकर प्रेम में पागल होई,
किशोरी! तुम सा प्रेम करे क्या कोई।
न भाए यमुना तट,न भाए मनोहर कुंज के वन,
न ललचाए वृंदावन की गलियां औ शीतल पवन।
श्याम विरह अति भारी, व्याकुल नैन दो रोईं,
किशोरी! तुम सा प्रेम करे क्या कोई।
जब से गए मथुरा नगरी, यूं छोड़ गोकुल धाम,
भरे हुए दूध माखन मटकी,राह तके सुबह शाम।
सांवरी सूरत के कारण चैन सुख सब खोई,
किशोरी!तुम सा प्रेम करे क्या कोई।
मलिन दीपक की ज्योति,फीके पड़े होरी के रंग,
युग बीते बिन दरसन के, मन भागे सांवरे संग।
प्रेम पीर हिय में हो ऐसे, दीजिए सुख सोई,
किशोरी! तुम सा प्रेम करे क्या कोई।
जग न समझे मोल प्रेम की, कपट करे यूं माया,
आत्मा परमात्मा का मिलन,जेसे काया संग छाया ।
प्रियतम को सुख देकर सारे,केवल पीर संजोई,
किशोरी! तुम सा प्रेम करे क्या कोई।
©वर्षा महानन्दा, बरगढ़, ओडिशा