लेखक की कलम से

कब तक चुप रहूं…..

कुछ ने कहा चुप रहो
कुछ ने कहा इज्ज़त करो

कुछ ने कहा इज़्ज़त ना उछालो
कुछ ने कहा इज़्ज़त की खातिर मरो

कुछ ने कहा लड़की हो
कुछ ने कहा मा हो

कुछ ने कहा पगड़ी मा उछालो
कुछ ने कहा पैर ना पसरो

कुछ ने कहा पति है मार खाकर भी हर्ज़ नहीं हमबिस्तर हो ज़ायो
कुछ ने कहा जितना भी कटाक्ष शब्दों का उपयोग हो सेहन करती रहो

निशान छिपाकर उसी के आंगन में फिर से दीपक जलाओ और उसी की लंबी कामना के लिए व्रत उपवास रखो
जीवन मंत्र जीवन तंत्र को भी हो पर हर औरत की हक़ीक़त की कहानी सुनकर कान बंद मत करो

मारी गई या मरी बेटी होने से अच्छा है अलग होकर जीवन की सच्चाई का सामना करा करो
डरने दबने के हालात सुधरने तक का इंतज़ार करते करते शायद बहुत देर ना हो जाएं

सावधानी से देर भली की परिभाषा यहां लागू ना किया करों,
वक्त बदल कर वक्त पर सवाल खड़े करने वाले वो चार लोग क्या कहेंगे ,आज तक वो चार लोग पूछने नहीं आए बेटा तू दुखी क्यू है, ये निशान कैसे है, रोती क्यूं है, खाना खाया या नहीं, मुकुराना भूल क्यूं गई है??

ये सवाल एक बवाल है सुनामी को अंदर है उसकी चेतावनी हैं, पानी का स्तर ऊपर हो चुका है
उठो जागो इज़्ज़त की दुहाई देने वालों ज़रा सोच कर देखो ये तुम पर बीतेगी तो क्या होगा ?

मशवरे हिदायत देने वालों ज़रा कमज़ोर ना समझो करो
ख़ुद की बहन बेटियों पर बीती हो तो आवाज़ उठाते हो
आज इन्कलाबी औरत के ज़मीर ज़िंदा जलाए जाते है तो कैंडल मार्च निकलते हो बस?
कभी देहज के कारण, कभी लड़की पैदा करने के कारण, कभी बेटा ना करते के कारण , कभी उनकी उम्मीदों पर ना खरी उतरने के कारण, कभी मेरी ज़रूरतो का ना झेल पाने के कारण , कभी अपनी मर्ज़ी से जीना चाहने के कारण, कभी गलत पर सवाल उठाने के कारण,

कारोबार कारनामे का नहीं कारणों का कहना है
औरत को दबाने का पायदान समझ कर धूल समझने का हैं

कदर हावी होने की नहीं कदर वक्त रहते ही पहचानने की है
वक्त की नहीं सदियों से संघर्षरत करती औरतों के व्यतिव पर ही क्यूं होते हैं?

सवाल हर बात का जवाब औरत ही क्यूं भुगती हैं
आदमी से अलग है तो वो गलत क्यूं होती हैं?
गलत नज़र से देखी जाती , हास्य का कारण क्यूं बन जाती हैं?
मर्दों की इस दुनियां में सम्मान का प्रचार ख़ुद का बहिष्कार क्यूं करवाती हैं?

भूलेखे में कब तक जीयोगे?
बेचारी अबला नहीं है वो,
काली दुर्गा शक्ति क्षमता है वो
अपने आप को मर्दं कहने वाले वो
हिम्मत है तो बाप की पदवी से जो गुरूर समझते हो
तुम ख़ुद भी औरत की हो कोख़ से जन्मे हो
हर मां बाबा ने फ़र्ज़ निभाया सौंप देते हो
अदब से इज़्ज़त से कमाई इज़्ज़त बरक़रार रखते हो
तभी होगी जब आपकी सुपुत्री ख़ुशी से जीवित महसूस करेंगी।
जीवन साथी वो नहीं जो मजबूत ख़ुद को ही समझे मर्दं संग है

ये सवाल औरत के जहन में कोई कसर न छोडे ऐसा हर औरत मर्दं के साथ होकर कोई भी रिश्ता हो या ना हो वो महफूज़ समझे
वो जीवन रूपी द्रव्य प्रेम स्नेह सम्मान बराबरी का अधिकार की परिभाषा समझे और विपरीत असर भी दिखे तो आवाज़ को चुप्पी साधने की तकलीफ को फिर से समझे।

© हर्षिता दावर, नई दिल्ली   

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