लेखक की कलम से

फिट इंडिया मूवमेंट को जन आंदोलन रूप देने की जरूरत

भागदौड़ भरी इस जिंदगी में सब कुछ जानते हुए भी समय के कमी का रोना रोकर इनसान जीने की इस कला को नहीं अपना पा रहा है और यही वजह की तमाम प्रकार की बीमारियां घर कर जा रही है। लोग असामयिक मौत का शिकार होते जा रहे हैं। स्वास्थ शरीर न केवल बीमारी से हमें बचाते हैं तमाम दुर्घटनाओं से हमें बचाते हैं बल्कि देश के आर्थिक सामाजिक के उन्नति भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

आज पूरे विश्व के सामने जो समस्या उभर कर सामने आई है वह स्वास्थ्य समस्या। स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है, कि हम अपने जीवन में आने वाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो आज के समय मे अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हो चुकी हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं।

आत्म: इंद्रिय मन: स्वस्थ: स्वास्थ्य इति अवधीयते। चरक संहिता के इस श्लोक के अनुसार जिसकी आत्मा, मन एवं इंद्रियां स्वस्थ हों, वही वास्तव में स्वस्थ है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा को देखे तो शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक (धार्मिक) दृष्टि से सही होने की संतुलित सतह का नाम स्वास्थ्य है, न कि बीमारी के न होने का।’

आज विश्व के सभी देश स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर सचेत है दुनियाभर में ऐसे अभियानों में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। पड़ोसी चीन भी हेल्दी चाइना 2030 पर काम कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने 2030 तक 15% लोगों को आलस्य से निकालने का लक्ष्य रखा है। अमेरिका 1000 शहरों को फिटनेस से जोड़ने पर काम कर रहा है। ब्रिटेन और जर्मनी भी फिटनेस की जरूरतों को समझ रहा है। कई देश पहले से इस पर काम कर रहे हैं, स्वास्थ्य भारत की परिकल्पना को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की।

स्वास्थ्य ही धन है अगर यही नहीं रहा तो कुछ भी नहीं रहेगा एक स्वास्थ्य समाज के लिए एक   स्वास्थ्य तंत्र का होना बेहद जरूरी है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क निवास करती है आज देश में डायबिटीज जैसे अनेक बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। बच्चे भी इससे पीड़ित हो रहे हैं, नौजवानों को 40-50 साल में ही हार्ट अटैक आ रहा है। ये लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां हैं।

हम डेली रूटीन में बदलाव कर इनसे बचा जा सकता है। इन बदलावों के लिए प्रेरित करना ही फिट इंडिया मूवमेंट है। व्यायाम और फिटनेस रोजमर्राकी जिंदगी में चर्चा का विषय बनना चाहिए। दुनियाभर में ऐसे अभियानों में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है

अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट की बात करें तो तो 2016 में विभिन्न प्रकार के बीमारियों से 95 लाख 69 हजार लोगों मौत हुई है जिसमें से 63 फ़ीसदी मौतें गैर संक्रामक रोगों से हुई है गैर संक्रामक रोगों से मरने वाले पुरुषों की संख्या 33 लाख 13 हजार  रही जबकि महिलाओं की संख्या 26 लाख 82 हजार  थी। जिस में 27 फ़ीसदी लोग कार्डियोवैस्कुलर डिजीत, 9 फीसदी केंसर जैसे खतरनाक बीमारी से मौत हो गयी। 11 फीसदी लोगों को सांस से संबंधित गंभीर समस्याओं से मौत हो गई। 3 फीसदी लोग डायबिटीज जबकि 13 फ़ीसदी लोगों की मौत दूसरी और गैर संक्रामक बीमारियों से काल के घर चले गए

26 फीसद लोगों की मौत संक्रामक बीमारियों से होती हैं

अगर हम भारत की बात करे तो आईएचएमई की रिपोर्ट पर गौर करें तो पाते है कि भारत में इस्केमिकहाई डिजीज, स्ट्रोक, डायरिया जानित बीमारिया लोअर  रेस्पिरेटरी इफेक्ट, टीवी, निओंनेटलडिसआर्डर, अस्थमा, डायविटीज और कोनिक किडनी डिजीज भारत में सबसे ज्यादा मोते होती है। भारत में मोतो का कही न कही महंगी दवाओं असर भी दिखता है। हर साल करीब 3.2 से 3.9 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं जिसके पीछे का कारण प्रमुख कारण है सरकारी सुविधा उपलब्ध ना होना है यही कारण है की  भारत आउट ऑफ पॉकेट स्पेंडर के 50 माध्यम वेतन वाले देशों में छठे नंबर पर है आज पूरा विश्व इस समस्या से उभरने के लिए अपने विकास के  एजेंडे में शामिल किया है भारत अपने पूरे जीडीपी का 1फीसद स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है भारत सरकार 3 रुपए प्रति भारतीय  सेहत पर खर्च कर रहा है भारत सरकार 93 रुपए प्रतिमा और 1112 रुपए पर कैपिटा प्रतिवर्ष है पर यह खर्च 10 साल से जीडीपी पर सबसे कम भारत में सेहत पर खर्च किया गया है। 1.02 फीसदी जीडीपी का स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल खर्च का अंश है जबकि 1.4 फीसदी जीडीपी का हिस्सा से पर खर्च करते हैं अगर छोटे कमाई वाले देशों की बात करे तो श्रीलंका 2.4 फीसदी, 2.9 थाईलैंड, भूटान 2.5 फीसद, मालदीप 9.4 फीसदी, पाकिस्तान 0.97 फीसदी अपने कुल जीडीपी का स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्चा करते हैं। भारत को  भारत को फिट इंडिया मूवमेंट के तहत खेलों पर निवेश करने की सबसे ज्यादा जरूरत है। भारत में दुनिया के मुकाबले खेल पर कम खर्चा किया जाता है 2018 संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक देश के प्रति खिलाड़ी रोज 3 पैसे पैसे रोज 3 पैसे ही खर्च करता है और यही वजह है कि युवा अपने कैरियर के तौर पर खेलों के तौर पर खेलों को अपनाना नहीं चाहते हैं। वहीं हम अगर भारत के अपेक्षा दूसरे देशों की बात करें तो अमेरिका के खिलाड़ियों पर खर्च 22 रुपए प्रति खिलाड़ी रोजाना करता है। हम बात करें ब्रिटेन की तो 50 पैसे प्रति खिलाड़ी रोजाना खर्च करता है करता है पैसे प्रति खिलाड़ी रोजाना खर्च करता है करता है जमैका  जैसे गरीब देश भारत से कहीं ज्यादा अपने खिलाड़ियों पर 19 पैसे प्रति खिलाड़ी रोजाना खर्च करते हैं भारत में इसका असर बजट 2019 में दिखा है 2019 में 2216 करोड़ रुपए के खेल बजट का प्रावधान था जो पिछले साल की अपेक्षा इस साल ज्यादा का बजट था बजट के साथ-साथ हमें अपने खेल नीतियों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

फिट रहने के लिए हमे रोजाना कम से कम आधा घंटा निकालना चाहिए ऑफिस या घर की सीढ़ियों पर दिन में 8 से 10 बार चलना चाहिए पैदल चलते वक्त गति में तेजी लाने का लक्ष्य रखें डॉक्टर से अपना रूटीन चेकअप नियमित रूप से कराते रहें।

‘स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जीवन में कोई लक्ष्य हो तो जीवन संतुलित हो जाता है। सफलता और फिटनेस एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। स्पोर्ट्स, बिजनेस और फिल्म सभी सेक्टर में जो फिट है, वही शिखर पर है। बॉडी फिट है तो माइंड हिट है। हम अपने शरीर और ताकत के बारे में बहुत कम जानते हैं। फिटनेस से उन्हें अपनी ताकत का पता चला है। इसमें इन्वेस्टमेंट जीरो है, लेकिन रिटर्न 100% है। अभियान देश के हर जिले और गांव तक पहुंचना चाहिए। किसी दल या सरकार को इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।’

भारत सरकार स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए गरीब परिवारों को स्वास्थ्य बीमा से जोड़ने के लिए आयुष्मान भारत योजना प्रधान मंत्री जन आयोग योजना शुरू की गई है। जिस देश में स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा पर ज्यादा योगदान दिया जाता है वह देश जल्द ही जल्द विकासशील श्रेणी से विकसित की ओर अग्रसर होता है। फिट इंडिया मूवमेंट को जन आंदोलन के माध्यम से लोगों के प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है है है शहरों की अपेक्षा ग्रामीण स्तर पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है जहां पर स्वास्थ्य समस्याएं ज्यादा रहती हैं।

©अजय प्रताप तिवारी चंचल, इलाहाबाद

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