मां…..
तुम्हारे खुरदरे हाथों का… नर्म स्पर्श,
आज भी भिगो जाता है मुझे,
ममता भरे एहसास से,
याद है आज भी, वो तुम्हारा.. सतत् परिश्रम,
किया गया निर्विकार भाव से,
वो तुम्हारा तड़के प्रथम प्रहर में उठना, उठते ही ,पूर्व संध्या मिट्टी से लीप कर रखी अंगीठी में झटपट कच्चे कोयले डाल,
नीचे के मोखले में तेल डली कंडी संग कुछेक कागज़ की कतरने ठूंस,
माचिस दिखा, उसे सुलगाने की कोशिश,
गत्ते से झबकते हुए उसे,
दो-चार उबासियों के बीच, उनींदी आंखों को एक हाथ से मसलते हुए,
नींद को अलविदा कहने की भरसक कोशिश,
लौ पकड़ते ही कोयलों के,
झटपट दो किलो आटा सान,
गरमा गरम भरवां परांठे तैयार कर,
परोसना प्रेम पूर्वक दही अचार से,
नौ बजते ही स्वयं स्नान, पश्चात् ठाकुर सेवा,
फिर रोटी की तैयारी,
रोटी खाते हुए.. शराबी नाकारा पति की दो-चार गालियाँ,
हमेशा रहीं तुम्हारे रोजमर्रा के जीवन का अभिन्न अंग,
घड़ी की दोनों सुइयों के मिलन के साथ,
शुरू हो जाती तुम्हारी कढ़ाई बुनाई की क्लास,
कभी कभी तो तुम्हें, खाते देखा खाना.. उन्हीं औरतों के साथ… अचार से….,,,
सब्जी जो न बचती थी आखिर में,
पांच बजते ही फिर ब्यारु की तैयारी में–अंगीठी का खाली करके मिट्टी से लीपना,सुखाना और दूसरी सूखी अंगीठी को सुलगाना,
सबको खिलाकर पकवान,
तुम्हारे हिस्से आयीं सिर्फ गालियाँ और दुत्कार,
फिर भी तुम न टूटी थीं माँ,,,
अनगिनत दुख झेलकर भी,
होठों पर हमेशा मुसकान ही रही,
तुम झुकीं नहीं, रुकी नहीं, बाधाओं के आगे,
तुम एक प्रेरणा स्त्रोत हो मेरे लिए और मुझ जैसी अनगिनत स्त्रियों के लिए।
©विभा मित्तल, हाथरस उत्तरप्रदेश
फाईन आर्ट में स्नातकोत्तर, बीएड, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। सभी विधाओं में लेखन।