लेखक की कलम से

कुरुक्षेत्र के क्या है हाल …

 

और कहो बस संजय तुम

उस युद्ध भूमि के क्या हैं हाल।

दो पक्ष खड़े उस युद्ध भूमि में

क्या है उनके तैयारी का  हाल।।

 

पूछ रहा वो नेत्रहीन जिसके

अंदर है स्वार्थ भरा।

दो पक्षो को सामने कर अब

हाले युद्ध है पूछ रहा।।

 

निजस्वार्थ है हावी इसपर अपनों को

फायदा पहुँचाने का ललक भरा।

अब संजय से क्या पूछ रहा है

निजस्वार्थ में हीं तो अंधा  रहा।।

 

संजय तो बस निमित्त मात्र है

तुम ही तो खलनायक रहे।

अब दोष मढोगे किस पर तुम

खुद हीं तो खलनासक रहे।।

 

उस परासर पुत्र के आगाह पर

रख न सके तुम धीरज धीर।

अब दिव्य दृष्टि लेकर भी संजय

हर न सकेंगे तुम्हारा पीर।।

 

किनारा किया तुमने विदुर से

और कुंद किया राजनीति का धार।

पुत्र मोह तुममे गहरा है यही

कराएगा तुम्हारा संघार।।

 

अब भी समय है रोक सको तो

करवा दो तुम युद्व विराम।

एक बार फिर सरसैया पर

गंगापुत्र को मत करने दो तुम आराम।।

 

दृष्टि नही हैं तेरे तो  फिर

दिव्यदृष्टि का करो इंतजाम ।

इतिहास से कुछ कटु अनुभव लो

और करो कुछ पुख्ता इंतजाम।।

 

नही तो संजय चला जायेगा

दिव्यदृष्टि को लेकर के साथ।

कालकोठरी इंतजार करेगा

कुरुक्षेत्र के लड़ाई बाद।।।

 

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद                       

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