लेखक की कलम से

अगर सीख ले स्त्री …

धूप में भीगना

बारिश में चमकना

अगर सीख ले स्त्री

खुशरंग फिज़ा सी महकती

चहकती उड़ती फिरे

किसी तितली की तरह

 

पढ़ती रही सबके मन

अनजान रह खुद से

 

कैसे कैसे भी दिन आते रहे

साल दर साल मौसम करवट

बदलते रहे…. दिन से रात

पतझड़ बसंत गुजरती रही

बदलता रहा सब

 

बस नहीं बदली तो केवल वो

जैसी थी वैसी की वैसी ही रही

 

भीड़ भरे बाज़ारों में ढूंढती

कुछ अपने रही…….

बंद आँखों से भी

दूर क्षितिज नापती रही……

 

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा

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