लेखक की कलम से
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सुप्रभात
गर उन्नीस बीस हो जाए फिर कुछ कहना नहीं
हम बीस हैं बीस से कम हमें रहना नहीं
तन का मन का और जीवन का यही तराना
मस्ती का हो मौसम फिर और कुछ सहना नहीं!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
गर उन्नीस बीस हो जाए फिर कुछ कहना नहीं
हम बीस हैं बीस से कम हमें रहना नहीं
तन का मन का और जीवन का यही तराना
मस्ती का हो मौसम फिर और कुछ सहना नहीं!
©लता प्रासर, पटना, बिहार