लेखक की कलम से

पौष में रुई या दुई मुबारक

सुप्रभात

ठंडी हवाओं की बेचैनियां कहां मौसम समझता

अपनी ही धुनों में मस्त मौसम है रहता

बाखबर जमाना भी नहीं रह पाता है यहां

हवा और मौसम की सरगोशियां खूब परखता!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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