लेखक की कलम से

बाप परेशान है …

उसने पुत्र की चाह में,

माँगी थी मुरादें और,

किये थे व्रत, उपवास।

ना जाने कितने मंदिरों में,

माथा टेका था।

कि मेरा भी कोई वारिस होगा।

इस बात से वह अबोध,

अब तक अनजान है ।

लेकिन यह सच है कि,

बाप कहलाने की चाहत में,

आज बाप परेशान है—–

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अपने बच्चे की परवरिश खातिर,

भूखे प्यासे उसने हर दर्द सहे हैं।

दिल में उठा दर्द पैरों पर पड़े छाले,

फिर भी उसने उफ्फ न कहे हैं।

महंगे मोबाइल और बाईक में,

घुमने वाला बेटा, पिता के दर्द से,

ना जाने क्यों अनजान हैं।

लेकिन यह सच है कि,

अपने फर्ज निभाने की गरज में,

आज बाप परेशान है …

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बेटे के भविष्य की खातिर,

अपने जिंदगी की गाढ़ी कमाई ले,

दर -दर ठोकर खाते हुए भटक रहा,

इस आफिस से उस आफिस,,

और बेटा किसी कोने पर,

बेफिक्र सिगरेट की गुबार उड़ा रहा है,

मानों यह पिता होने का इम्तिहान है,

लेकिन सच यह है कि,

पितृत्व के बोझ से लदा हुआ,

आज बाप परेशान है—

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शादी होने के साथ ही,

बेटे का बदल सा गया है तेवर।

बहू के नाम पर हो गया है,

घर ,जायदाद ,पैसे और जेवर।।

सुना है आजकल बेटे ने अपना

कहीं अलग बना लिया मकान है।

क्या होगा मेरे बुढापे का,

यह सोच बाप हलाकान है।

सच कहूँ तो किसी न किसी रूप में,,,

आज बाप परेशान है—-

 

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)            

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