लेखक की कलम से
बातों का जायज़ा …
वक्त बेवक्त की बातों का जायज़ा लगाना नहीं आता
बेकसूर को कसूरवार ठहराना नहीं आता
बड़ी खबरों की तरह दिल लगाना नहीं आता
आता है तो बस नेकी की राह चलती हर्षिता किसी दिल दुखाना नहीं आता
कर्मं की सीढ़ी पर किसी को रौंद कर आगे बढ़ना नहीं आता
दिल दुखाया है बहुतों ने पर हमें दिल दुखा कर अपना स्वार्थ साधना नहीं आता,
मगर ख़ुद का बुरा हद से ज्यादा करे कोई तो बेकसूर छोड़ना नहीं आता
नियति यही कहती हैं हद की भी हद होती हैं,
हद से ज्यादा सहन करना नहीं आता,
गुरूर में जीने वालों स्वाभिमान हमारा भी है अपने हक़ पे आवाज़ दबाना नहीं आता …
© हर्षिता दावर, नई दिल्ली