लेखक की कलम से

गुमनामों को याद करें ….

पाँच अगस्त बस पांच नहीं,

यह पंचामृत कहलायेगा!

पुनः रामायण रामभक्तों द्वारा,

राम मंदिर का लिखा जाएगा!!

जितना समझ रहे हो उतना,

भूमि पूजन आसान न था!

इसके खातिर जाने कितने,

माताओं का दीप बुझा!!

 

गुम्बज पर चढ़कर कोठारी,

बन्धुओं ने गोली खाई थी!

नाम सैकड़ो गुमनाम हैं,

जिन्होंने जान गवाई थी!!

 

इसी पांच अगस्त के खातिर,

पांचसौ वर्षो तक संघर्ष किया!

कई पीढ़ियाँ खपि तो खपि,

आगे भी जीवन उत्सर्ग किया!!

 

राम हमारे ही लिए नहीं बस,

उतने ही राम तुम्हारे हैं!

जो राम न समझ सके वो,

सचमुच किस्मत के मारे हैं!!

 

एक गुजारिस है सबसे बस,

दीपक एक जला देना!

पाँच अगस्त के भूमि पूजन में,

अपना प्रकाश पहुँचा देना!!

 

नहीं जरूरत आने की कुछ,

इतनी ही हाजरी काफी है!

राम नाम का दीप जला तो,

कुछ चूक भी हो तो माफी है!!

 

कविता नहीं यह सीधे सीधे,

रामभक्तो को  निमन्त्रण है!

असल सनातनी कहलाने का,

समझो कविता आमंत्रण है!!

 

  ©बृजेश शर्मा, बारांबंकी, उत्तरप्रदेश   

 

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