वकत की कलम …
मैंने जीवन की सारी आशाओं और निराशाओं को
समय में निवेश कर दिया है ।मन में उपजी संभावनाओं को
समंदर बना दिया है।और कर दिया है सपनों को लहरों के हवाले देखते हैं ।समय की स्याही कौन सा रंग लेती है।
शायद, आप हँस रहे होंगे ।पर कोई बात नहीं
इस अथाह प्रतिस्पर्धा में ,बौनों से हार जाने के बाद
जान लो।यथार्थजीवन से मुठभेड़ का
पर फिर भी थोड़ा सा विश्वास बचा रखा है ।मैंने
पहाड़ के पीछे छुपे हुए सूरज की तरह
मुझे नहीं पता कौन सा रास्ता कहाँ जाएगा
मेरे आधे-अधूरे सपनों का परिणाम क्या होगा
बस मुझे पीछे मुड़ कर नहीं देखना
मुझे भीड़ में नहीं खोना
और मुझे मुस्कुराना नहीं छोड़ना
सच्चाई समझ कर,मुठभेड़ का आखिरी उपहार
गोपनीय होता है। कोई नहीं जानता
कुछ नहीं जानता •••••
मुझे नहीं पता कि तुमने किस बारे में बात की ..
लेकिन मुझे पता है अब बहुत देर हो गई है
यहां तक कि अगर मैं पहाड़ पर भी चढ़ जाऊं
तब भी हमारे बीच कोई रात नहीं कोई सुकून नहीं
न ही कोई आग और न ही प्रतीक्षा
बस कुछ है जीवन और भाग्य के बीच
शेष …
केवल एक पहाड़ !
सिर्फ एक पहाड़ !!
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा