लेखक की कलम से
साँझ …
चाहत किसी की कुछ इस तरह होने लगी
मखमली धूप अहसास के मोती पिरोने लगी
दूर जाने से दर्द का आलम
नजदीकियां रूह को भिगोने लगी
तेरा मिलना खुदा की रहमत
बिछड़ने से धड़कने रूकने लगी।
नब्ज मध्यम होने को थी।
आखिरी हिचकी तेरे कांधे पे आये
मौत की आहट मैं शायराना चाहती हूँ।।
शौखियो से इंद्रधनुषी प्यार की शाम
आक्षी का सुख
रहे हमेशा बस इतनी ख्वाहिश के साथ
आखिरी हिचकी लेना चाहती हूँ।
आक्षी की साक्षी यही है।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा