लेखक की कलम से

क्या लिखूं …

लिखूं किसी के खातिर तो कैसे?,

जितना जिया, लिखा उतना ही जायेगा।

तुम कितना समझे, उतना ही मिल पायेगा।

बहुत बड़ी दुनियां है, इसमें अधिकारों के नियम अलग हैं।

तुमको है अधिकार ज़रा सा, उतना ही लिख पाओगे।

यह सुख की बाती है, दीपक के मध्य खड़ी है,

जितना तैल भरोगे, आभा उतनी पाओगे।

चर्चित हो जाने के खातिर, मत लिखना,

वरना एक समय के रहते, फिर न पूंछे जाओगे।

तुलसी के पदगामी बन कर, लिखो स्वयं के हेतु,

वरना सुख न मिलेगा, क्षण क्षण दुःख को ही पाओगे।

जो भोगा है, उसको ही लिखना काफी है।

एक विषय की गहराई में डूब गये, काफी है।

समय नहीं आता है वापस, उसको कैसे पाओगे।

©डॉ. सोमनाथ यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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