लेखक की कलम से

लोभ बहाता खून …

समीक्षार्थ दोहे

 

1.लोभ पाप का मूल है, रहें सदा ही दूर ।

वृत्ति रखें सन्तोष का, मिले खुशी भरपूर ।।

 

2.प्रभु दर्शन के लोभ से, मनवा सुख मिल जाय ।

शुभ चिंतन सद्ज्ञान ही, सतमारग दिखलाय ।।

 

3.लोभ अहं से है बड़ा, धन संग्रह का धून ।

रिश्तों को तोड़े अहं, लोभ बहाता खून ।

 

4.दूर रहें अतिलोभ से, लोभ कभी ना त्याग ।

लोभ दिलाता लाभ है, अतिलोभन से भाग ।।

 

      1. हाथ पंसारे आत है, हाथ पंसारे जात ।

मान, नाम के लोभ से, जीवन व्यर्थ गँवात।।

©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)

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