लेखक की कलम से

अवतार …

वीभत्स , घृणित सच्चाई से भला है वो झूठ ,

जो था ढंका हुआ।

हम इतने भावना शून्य कैसे हुए?

यह विकास कब किया??

वेदना दे रही यह कडवी सच्चाई ….

मनुष्यता की न रही परछाई ।

जहाँ नजर करो ..मौत का तांडव

यमराज समझ खुद को , खडे हर चौक पे मानव है।

ईश से भी ऊपर रख खुद को…

सजा दे रहे बेगुनाह निरीह को।

सर्वश्रेष्ठ की उत्तरजीविता के सिद्धान्त की दुहाई,

जो मानव रूपी दानव को सतह पर लाई।

न जाने कितने बेगुनाहों की रक्त पिपासा से बुझेगा ….

न जाने कब अवतार तू लेगा???

©अनुपमा दास, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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