लेखक की कलम से
सुनो तुम …
तुमने कहा था हूँ लक्ष्मी मैं
फिर मेरे जन्म पर क्यूँ मुहँ लटके?
तुमने कहा था हैं सब बराबर
फिर क्यूँ मुझे गुडिया और उन्हें बॉल?
तुमने कहा था नज़रे झुका कर चलो
फिर भी क्यूँ मुझे बदचलन कहा?
तुमने कहा था, मैं साड़ी पहनू
फिर मेरा क्यूँ बलात्कार हुआ?
तुमने कहा था कि मैं इज्जत दो घरों की
फिर क्यूँ मुझे तिरस्कृत किया जाता मेरे ही घर में?
तुमने कहा था मैं ही हूँ असली धन
फिर क्यूँ दाहेज दहन हुआ मेरा?
तुमने कहा था ,पूजा करो पति परमेश्वर
फिर क्यूँ सिर्फ भोग ही समझा मुझको?
तुमने क़हा था मैं ही हूँ जननी
फिर क्यूँ मेरी छाती छलनी हैं?
तुमने कहा था महकाये मैंनें हैं दोनो अंगना ?
फिर क्यूँ देहरी कोई मेरे नाम नसीब नहीं ?
तुमने कहा था मैं पूर्ण समर्पिता
फिर क्युँ वो और कहीं अर्पित
सब कुछ तेरे हिसाब का था
फिर क्यूँ हनन हुआ मेरा?
©ऋतु चौधरी, ग्वालियर, मप्र