लेखक की कलम से

कोरोना की लड़ाई में विश्व की नजर नरेंद्र मोदी पर …

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए कटिबद्ध दिनरात काम कर रहे हैं, प्रधानमंत्री। Covid19 से लड़ाई में भारत सरकार के कार्यों और नीतियों की सारा विश्व प्रशंसा कर रहा है, किन्तु विपक्ष इस समय भी घटिया राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। समय रहते ततपरता से हम सीमित संसाधनों से डटकर मुकाबला कर रहे हैं, आज अमेरिका हमसे दवाईयों की मांग कर रहा है, WHO लॉकडाउन के चुनौती भरे निर्णय को समय से उठाया गया साहसी कदम बता रहा है।

प्रधानंत्री मोदी ने पीएम केयर्स फंड बनाया है, जिसमें भारत के तमाम लोग फंड दे रहे हैं। इस बीच सांसदों और मंत्रियों के वेतन में कटौती के अलावा एमपीलैड (MPLAD) यानी सांसद निधि भी खत्म कर दी गई है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की मीटिंग में ये फैसला किया गया है, कांग्रेस के अधीर रंजन ने इस फैसले को अन्याय बताया, अन्य विपक्षी दलों के नेता भी इस फैसले से खुश नहीं हैं। आम आदमी पार्टी ने भी इस कदम का विरोध किया है।

आपकी जानकारी के लिए बता दूं, सांसद निधि में प्रत्येक वर्ष पांच करोड़ रुपए दो किस्तों में मिलती है। हाल ही में सांसद निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ सालाना करने की मांग भी उठ रही थी। ऐसे में सांसदों के वेतन में 30% की कमी एक वर्ष के लिए व सांसद निधि दो साल के लिए बंद करने से विपक्षी सांसदों में रोष है।

मुझे समझ नहीं आर हा कि सांसद तो सर्वाधिक भाजपा के ही हैं, सबसे ज्यादा प्रभाव तो उनके क्षेत्रीय विकास कार्यों पर पड़ेगा, उनकी परफॉर्मेंस खराब होंगी, फिर गिने-चुने विपक्षी सांसदों को क्या परेशानी है? बल्कि मुझे तो यह लगता है के सांसदों की तनख्वाह भी 2 साल तक 50 प्रतिशत कटौती करते तो ज्यादा अच्छा होता।

करोना संकटकाल में यदि विश्व में कोई नेता संकटमोचक की भूमिका में दिख रहा है, तो वो कोई और नहीं हमारे प्रधानमंत्री हैं, वे विश्व को दिशा दे रहे हैं, उनके साहसी निर्णय स्वयं में अद्भुत है और इस संकट से उभरने में कारगर सिद्ध होंगे।

चाहे “पीएम केयर्स” की स्थापना हो या विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित लाकर उनके उपचार की व्यवस्था देखना, चाहे डॉक्टर्स, नर्स या सेना के जवानों से व्यक्तिगत बातचीत करके उनका मनोबल बढ़ाना हो या संक्रमित लोगों की सेवा में लगे कोरोना योद्धाओं के सम्मान की बात हो, वे हर मोर्चे पर जुझारू योद्धा की भूमिका में नज़र आते हैं, अमेरिका भी उनसे मदद मांग रहा है, विश्व के अग्रणी देश उनके साहस, सम्बल और दूरदर्शिता की प्रशंसा कर रहे हैं। इस आपदा काल में वे भारत की समानरूप से परिवार के मुखिया की तरह देखरेख कर रहे हैं, जिस तरह उनके एक इशारे पर भारतीय एकजुट होकर उनकी अपील पर ताली औऱ थाली बजाकर और दीये जला रहा है, इससे उनकी लोकप्रियता ही नहीं अपितु देश की जनता का उन पर विश्वास भी नजर आता है।

देश आज नहीं तो कल इस बीमारी पर अवश्य विजय प्राप्त कर लेगा, किन्तु मेरा मानना है कि ये समय राजनीति का नहीं है, सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध मत कीजिए, आलोचना कीजिए वो आपका लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन पहले सही को सही कहना सीखिए, इस विपरीत परिस्तिथि में देश के साथ खड़े होईये जाति, धर्म, राज्य, भाषा और व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर वास्तविक रूप से मनुष्य बनिये, नर सेवा नारायण सेवा, जितना हो सके तन मन धन से सहयोग कीजिये, सबका साथ सबका विकास हो, उसके लिए हम सबका जिंदा होना भी जरूरी है।

©शीतल रघुवंशी, अधिवक्ता, दिल्ली उच्च न्यायालय

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