लेखक की कलम से

तुमने कहा …

तुमने कहा

वाकई, तुम खाना अच्छा बनाती हो

तुमने कहा

वाकई, तुम घर को साफ सुथरा रखती हो

तुमने कहा,

तुम अगर अपनी नौकरी की खातिर घर नोकरों पर छोड़ती तो बेटा बेटी का भविष्य अंधरे में होता।

तुमने कहा,

वाकई नाते रिश्तों को निभाने की सराहनीय कोशिश की

तुमने कहा,

वाकई,

गृहस्थी को सजाने संवारने में कोई चूक नहीं हुई तुमसे

मैंने कहा

कहीं कोई चूक न हो, इस लिए मै कितनी चुक  गई हूं !

क्या ज़रा भी  अंदाज़ा है तुमको ?

 

©सुदेश वत्स, बैंगलोर                    

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