लेखक की कलम से

नारी को चाहिए हक और सम्मान …

महिला दिवस पर विशेष

नारी को भी जरा उसके हिस्से का हक और उसका सम्मान तो दो

जो छू ना ले वो तारे गगन के तो कहना, पहले उसको स्वछंद आसमान तो दो।

 

कहानी : रहमत की जन्नत

 

पहला दृश्य

 

आदाब  रहमत मियां क्या हाल चाल है, काम कैसा चल रहा है,घर मे सब बाल बच्चे कैसे हैं।एक लुहार का काम करने वाले रहमत मियां से उनकी दुकान पर आये उनके एक मित्र ने पूछा

 

आदाब अब्दुल मियां अल्लाह के फजल से सब अच्छा है ,बेटे हामिद का निकाह हो गया है,और बहु भी इतने नेक ख्याल वाली और खुदा की नेक बन्दी है मुंह में तो जैसे उसके ज़बान ही ना हो।दो पोतियां है खुशी व नगमा , जिनकी हँसी से घर गुलजार रहता है।

 

लेकिन भाईजान तुम तो अपनी भाभी को जानते ही हो,कितनी कड़वी जुबान है,ना खुद खुश रहती है ना किसी को रहने देती है, छोटी छोटी बातों पर घर सर पर उठा लेती है, अपने आगे किसी की भी चलने नहीं देती है,अल्लाह के रहमो-करम से दो पोतियां हैं इतनी प्यारी ,लेकिन मजाल जो उन्हें जरा रत्ती भर भी प्यार दे। एक ही रट लगाए रहती है ,या तो अबकि उसकीबहू को बेटा हो जाए या वो अपने बेटे हामिद का दूसरा निकाह कर देगी उसका कहना है,वंश आगे कैसे बढ़ेगा…

 

हम दोनों तो सुबह ही दुकान आ आ जाते हैं भाई जान ,पर तुम्हारी भाभी पूरा दिन आयशा बहु की जान खाये रखती है।

 

आयशा भी इस फिक्र में सूखकर कांटा हुए जा रही है और यह हामिद भी अपनी अम्मी से कुछ नहीं कहता,बस उसकी हां में हां मिलाता रहता है ।समझ नहीं आता क्या करूं खुदा करे इस बार इसको एक बेटा दे दे, नही तो वो ना जाने क्या करेगी होने वाले औलाद और बहू आयशा के साथ अल्लाह ही जाने …

 

दूसरा दृश्य

 

कुछ समय बाद जच्की का समय आने पर जब आयशा को फिर से बेटी पैदा हुई तो रहमत की बीवी ने रहमत से कहा सुनो जी इस घर में तीन तीन लड़कियों का गुजारा नहीं होगा मेरा बेटा इनका खर्च नहीं उठा सकता कौन इनको पालेगा, कौन इनका निकाह करेगा,ये तो दूसरे घर चली जाएंगी बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा, इसको अभी ले जाओ और किसी अनाथालय में छोड़ आऔ

 

रहमत ने अपनी बीवी को समझाने की बहुत कोशिश की,कहाऔलाद बेटा हो या बेटी सब अल्लाह की संतान है तू खुद भी तो एक औरत है , इस मासूम को इसकी मां से अलग ना कर

उधर आयशा बेबसी के आंसू बहा रही थी उसने अपने ससुर से इल्तजा की अब्बू कैसे भी करके मेरी बेटी को बचा लो मेरी बेटी का क्या होगा ।अहमद ने अपनी बहू और खुद से एक वायदा किया अब चाहे जो हो जाए मैं इस नन्हे फरिश्ते को अनाथ ना होने दूंगा कहकर रहमत नन्ही सी जान को थाम कर उस घर से उसी वक्त निकल गया।

 

तीसरा दृश्य चौबीस बरस बाद

 

रहमत की जन्नत नाम के अस्पताल

में एक बूढ़ी लाचार औरत अपने बेटे जिसका सिर फूटा हुआ है अस्पताल में मिन्नत कर रही है कि उसके बेटे को बचा ले, और उसका इलाज कर दें तभी शीशे के पीछे  बैठा हुआ रहमत उस औरत को पहचान लेता है और बाहर आता है और कहता है राशीदा तुमने यह क्या हाल बना रखा है, राशिदा भी  उसे देख कर हैरान हो जाती है और कहती है हामिद के अब्बू अपने हामिद को बचा लो, आज हामिद की अपनी ही औलाद ने उसके अपने बेटे शादाब ने शराब के लिए मना करने पर इसका सिर फोड़ दिया, अल्लाह ऐसी औलाद किसी को ना दे….

 

हामिद के अब्बू आज मुझे एहसास  हो रहा है कि औलाद औलाद होती है चाहे फिर वो बेटा हो या बेटी…… खुदा भी मुझे कभी माफ नही करेगा मेरे लिए दोजख की आग भी कम है हामिद के अब्बू।मेरे हामिद को बचा लो ….. कहकर राशिदा रोने लगी

 

तू फ़िक्र ना कर हामिद सही हो जायेगा, जिस बेटी को तूने बोछ समझ कर छोड़ दिया था,आज वही बेटी मेरी पोती जन्नत  डाक्टर बन चुकी है।

 

रहमत ने हामिद को जल्दी से एडमिट कराया ,और जब हामिद को होश आया तो जन्नत से उन्हें मिलवाया  कहा ये तेरे अब्बू और दादी है ,तो जन्नत ने कहा मैं किसी को नहीं जानती दादू इन लोगों से तो मेरा रिश्ता तभी ख़तम हो गया जब पैदा होते ही इन्होंने मुझे छोड़ दिया….

 

अब आप ही मेरी पूरी दुनिया हो, क्या मैं नहीं जानती कि आपने कितनी तकलीफ़ो के साथ मुझे पाला पोसा, बड़ा किया,इस लायक बनाया…

 

डॉक्टर होने के नाते मेरा फर्ज था इनकी जान बचाना, लेकिन अब मेरा इनसे कोई वास्ता नहीं, इतना कह कर जन्नत अपने दादा के गले लग गई।

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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