लेखक की कलम से

खुशियां तुमने कितनी बांटी…

 

पर्वत_पर्वत घाटी_घाटी

पर्वत_पर्वत घाटी_घाटी

अरे यह बतलाओ मुझको तुम

खुशियां तुमने कितनी बांटी

 

सबके मन को ताक रहे हो

और हाव-भाव भी भाँप रहे हो

पर यह बतलाओ मुझको तुम

क्या निज मन में तुम झाँक रहे हो

पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी

खुशियां तुमने कितनी बांटी

 

प्यार को ही पढ़ते-सुनते हो

और सदा इसे गुनगुनाया करते हो

पर यह बतलाओ मुझको तुम

क्या प्यार कभी तुम जी पाये हो

पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी

खुशियां तुमने कितनी बांटी

 

सत्य-अहिंसा की बातें करते हो

और सत्य का मार्ग दिखाते हो

पर यह बताओ मुझको तुम

क्या सत्य पर तुम चल पाये हो

पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी

खुशियां तुमने कितनी बांटी

 

कोना-कोना महकाते हो

उजड़े को तुम चमन बनाते हो

पर ये बतलाओ मुझको तुम

क्या मधुरस भी तुम ले पाये हो

पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी

खुशियां तुमने कितनी बांटी।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

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