लेखक की कलम से
मूल नक्षत्र का स्वागत…
सुप्रभात
सहक सहक मन बहक बहक मन
सरसों सा लहराये रे
धानी चुनरिया ओढ़े धरती
कैसे है सरमाये रे
कोहरे की कनात लगी है सूरज लड़खड़ाये रे
नई दुल्हनिया बनी-ठनी सजना संग सरमाये रे
सहक सहक मन बहक बहक मन
सरसों सा लहराये रे!
©लता प्रासर, पटना, बिहार