लेखक की कलम से

अहमदाबाद की आयशा ने दहेज उत्पीड़न से तंग हो दी जान ….अगला कौन ..कब तक चलेगा ये दहेज लोभियों का खेल …

आज के दौर में दहेज नाम के दानव का नया रूप सामने आ रहा है जानिए कैसे ……पहले सुनने में आता था दुल्हन दहेज में क्या लाई है?? तो आज उसको थोड़ा घुमा फिरा कर नाम दिया गया है -के शादी में क्या मिला?? या कन्यादान में क्या क्या दिया बहू के घरवालों ने ?? देखो बहू हमारे यहां तो इतना सब तो देते ही है? हमारे जीजा के फूफा की बहू की लड़की को तो ये सब दिया था हमने ….. और भी ना जाने क्या क्या…..बेचारी लड़कियों को सुनने मिलता है।

भले ही पहले से नियम कानून सख्त हो गए हों या समय के मान से कुछ लोगों की सोच में उन्नीस बीस फर्क भी आगया हो ।लेकिन यह दहेज नाम का दानव वहीं का वहीं है ।

आज हम बात कर रहे हैं पिछले दिनों सोशल मीडिया में बहुचर्चित रहे आयशा आरिफ मामले की…। ज्ञात हो कि अहमदाबाद में 23 वर्षीय आयशा ने साबरमती नदी में कूदकर अपनी जान दे दी थी। सुसाइड करने से पहले उसने अपना एक वीडियो भी बनाया था, जो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ।जिसके बाद पुलिस ने उसके पति आरिफ खान के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया।

आखिर इतनी छोटी सी उम्र में एक लड़की ने इतना बड़ा दर्दनाक कदम क्यों उठाया? यकीन मानिए आयशा का सुसाइड से पहले का वीडियो देखकर मेरी आंखें भर आई। कितना टूट गई होगी वो अंदर से, कितना दर्द भरा होगा उसकी जिंदगी में जो इतनी कम उम्र में इतना बड़ा फैसला ले लिया उसने। हालाकि मैं आत्महत्या का समर्थन नही कर रही हूं। किंतु मैं समझने की कोशिश कर रही हूं के ऐसा कितना कुछ उसने सहा होगा जिससे उसे जिंदगी से ज्यादा मौत आसान लगी।

ना जाने कितने सालों से दहेज जैसी कुप्रथाएं चली आ रही हैं और कितनी ही पीढ़ियां इसमें झुलस चुकी हैं किंतु ऐसा लगता है अब इसका कोई हल नहीं हैं हमारे पास। लोग ले रहे हैं और लोग दे भी रहे हैं किसी को कोई परेशानी नहीं लगती इसमें।परेशानी तो तब है जी ,जब कोई इन दहेज लोभियों को बड़ा मोटा दहेज न देकर अपनी नाजों से पली बेटी दे दे।तब देखिए इनके तेवर,इनका वहशीपन- गुस्सा,मारपीट,घरेलू हिंसा और भी ना जाने कितना शारीरिक और मानसिक त्रास झेलना पड़ता है लड़कियों को।नोटों की गड्डी ना देने के एवज में।

आयशा आरिफ की कहानी कुछ नई नही है आखिर कई दशकों ,पीढ़ियों से तो यही होता आया है। आयशा के पिता गुजरात के वाटवा में रहने वाले एक टेलर है।उन्होंने अपनी बेटी की शादी 2018 में राजस्थान,जालौर के आरिफ खान से की थी। बताया जा रहा है की शादी के खर्च के लिए पिता ने अपनी कई अमूल्य चीजें बेंच दी यहां तक कि घर भी बेच दिया था उसके बाद भी आयशा के ससुराल वालों की मांग हमेशा बढ़ती रही।और जब वो मांग पूरी ना होती तो आयशा के साथ मारपीट होती यहां तक कि खाना भी नहीं दिया जाता।तंग आकर आयशा के घरवाले उसे अपने साथ गुजरात ले गए किंतु उन बेशर्म लोगों पर जरा सी भी शिकन नहीं आई ऊपर से आरिफ का आयशा को फोन पर खरीखोटी सुनाना और केस वापस लेने का दबाव बनाना ….अब उस बेटी के पास रास्ता ही क्या बचा था? रोज़ अपने घरवालों को और अपने आपको नई नई परेशानियां झेलते कब तक देखती।जिल्लत भरी जिंदगी जीने से बेहतर उसने अपने लिए मौत को चुन लिया।

चलो यह कहानी तो हमारे सामने आ गई अभी ना जाने कितनी ऐसी कहानियां है जिससे हम अनजान हैं। लेकिन हम खामोश है क्योंकि जब तक ये हमारी बेटी के साथ नही होता हमे क्या फर्क पड़ता है? हम निष्ठुर हो चुके हैं क्योंकि हमें किसी के दुख से कोई फर्क ही नहीं पड़ता और हां जब हमारी बेटी के साथ होगा तो जुगाड़ कर लेंगे कहीं न कहीं से पैसों की … और बेटी को भी सीखा देंगे के पैसों से ही इंसान की इज्जत होती है।ताकि वो भी इस रिवाज को आगे जारी रख पाए।

भले ही लड़के का परिवार 2 वक्त का खाना भी जुटा पाने का इंतजाम करने में सक्षम हो या न हो लेकिन भाई उनका तो अधिकार है लड़की के परिवार वालों को दौलत से आंकना और मोटी रकम की उम्मीद करना। और दहेज में मनमाफिक चीजें नहीं मिली तो उधेड़ देंगे चमड़ी लड़की की। लड़की वाले है डर जायेंगे …..क्या कर लेंगे? आखिर लड़की को रहना तो यही है, चुपचाप हर जुल्म सहना पड़ेगा।

लेकिन हम तो इस प्रथा को जारी रखेंगे रिवाज और परंपरा के नाम पर।ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ?? कई हजारों कन्याएं दहेज के दानव का ग्रास बनने की बजाय गैरकानूनी अल्ट्रासाउंंड क्लीनिकों में काल का ग्रास बन जाएंगी और कोख में ही मर जायेगी।.।अच्छा ही है ….बेटी पैदा करके उन्हे पढ़ाई लिखाई करवा कर क्या हो जाएगा?क्योंकि होना तो वही है।

मां बाप अरमानों से पालेंगे, पढ़ाएंगे फिर शादी करेंगे फिर वही दहेज का कुचक्र चालू। यदि हम दिखावे के ढोंग ढकोसलों में नहीं पड़कर सच में इस कुप्रथा को रोकना चाहते हैं तो सबसे पहले यह जिम्मेदारी अब युवा वर्ग पर ही है। क्योंकि इतना पढ़ लिखने के बाद भी हम यदि इस तरह की गलत और शोषणकारी मानसिकता रखते हैं तो लानत हैं हम पर और हमारी शिक्षा पर।लड़कों को भी यह फैसला करना होगा के इस मानसिकता का वो पुरजोर विरोध करे चाहे वो मानसिकता उसके घरवालों की या उसके जान पहचान में किसी भी क्यों न हो।

साथ ही में लड़कियों को भी इस तरह की कुप्रथा के खिलाफ डटकर खड़े रहना होगा।सभी लड़कियों को संकल्प लेना होगा के यदि कोई लड़का या उसका परिवार दहेज का लोभी है और वो किसी भी रूप से अपने लड़के का मोल भाव कर रहा है तो वो रिश्ता चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो आप खुद ही शादी से साफ इंकार कर दो ताकि आगे आने वाले भविष्य में आपको या परिवार को किसी तरह का मानसिक या शारीरिक दुख न झेलना पड़े।क्योंकि इस तरह की बातें शादी के पहले ही साफ हो जाए तो अच्छा है और यदि किसी के साथ बाद में ऐसा होता भी है तो डट कर ऐसे लोगों का सामना करें और आर्थिक रूप से सक्षम रहें ताकि आपको अपने भविष्य के फैसलों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े।

तब शायद कुछ बदलाव आना शुरू हो इस मानसिकता में।ध्यान रहे हम बदलेंगे तभी जग बदलेगा।

 

 

©परिधि रघुवंशी, मुंबई

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