लेखक की कलम से

नव विचारधारा…

©अर्चना त्यागी, जोधपुर 

नया साल, नई आशाएं, नई उमंग, नई अभिलाषाएं। नवीन विचार, नया संसार। कितना सुखद अहसास है। किन्तु दो चार दिन बाद ही हम सब भूल जाते हैं। वहीं पुराने हम, वही पुरानी हमारी दिनचर्या। वहीं पुरानी दोस्ती, वही दुश्मनी।
मुझे समझ नहीं आता कि नव वर्ष का उत्साह कुछ दिनों का मेहमान क्यूं होता है। क्यूं सम्पूर्ण वर्ष हम जुड़े नहीं रहते उन वादों इरादों से जो साल के पहले दिन खुद से करते हैं। क्यूं वो सभी बुराइयां मिटा नहीं पाते जो साल के पहले दिन खुद से मिटाना चाहते हैं। क्यूं जीवन में समा नहीं पाते उन अच्छाइयों को जो हर बार, हर साल सोचकर पहली तारीख को डायरी में लिखी जाती हैं और भुला दी जाती हैं।
मुझे लगता है हम बदलने का केवल दिखावा करते हैं। वास्तव में बदलना कुछ नहीं चाहते हैं। बदलाव हमें आकर्षित तो करता है परन्तु उसका स्थायित्व हमें स्वीकार नहीं है। इसलिए हर बार नए साल के आने पर बदलाव का आयोजन करते हैं और भुला देते हैं। वर्ष की समाप्ति पर फिर से बदलने की घोषणा करते हैं और फिर भूल जाते हैं। साल दर साल यही प्रक्रिया दोहराते रहते हैं। बदलाव की घोषणा मन की तसल्ली के लिए होती है, पूरा करने के लिए नहीं। इतनी सारी घोषणाएं नए साल की पार्टी के साथ ही खत्म हो जाती हैं।
बूंद बूंद से घड़ा भरता है। क्यूं ना ऐसा करें कि इस साल केवल एक ही संकल्प लें, हजारों नहीं। जैसे मैंने बस यही संकल्प किया है खुद से कि किसी भी व्यक्ति में केवल अच्छाई ही देखूंगी, बुराई नहीं। किसी के भी प्रति कोई नकारात्मक विचार नहीं आने दूंगी अपने मन में। इस बात को हर पल, हर दिन याद रखूंगी। यदि मैं ऐसा कर पाती हूं तो केवल सकारात्मक ऊर्जा ही मेरे अंदर, मेरे आस पास रहेगी अर्थात मेरी सभी बुराइयां भस्म हो जाएंगी। मेरी चेतना सकारात्मक रहेगी। कुछ भी होगा तो अच्छा ही होगा। एक संकल्प हजारों संकल्पों के समान होगा। अगले साल किसी नए संकल्प की आवश्यकता नहीं होगी। फिर से किसी आयोजन की आवश्यकता नहीं होगी। कोई घोषणा नहीं होगी। बस यही बदलाव आवश्यक है समाज में। यही संकल्प आवश्यक है मानव जाति के उत्थान हेतु।

Back to top button