लेखक की कलम से

जयचन्दों अब बन्द करो …

मेरे धरती को रंग दिया, आज फिर से लाल रंग में।

क्या तकलीफ है इत्ता बता, तुझे रहने मेरे संग में।।

 

कौन सा तेरा कौम है, और क्या है धरम और जात।

मेरे सरफ़रोशों के आगे, बता क्या है तेरी औकात।।

क्या मिलता है तुझे बता, नफरत के इस जंग में–

 

दंडकारण्य की घाटी में, तूने क्यों किया नरसंहार।

वीर साहसी हो नहीं सकता, तू कायर है, तू गद्दार।।

छिपकर वार किया है तूने, दर्द दिया अंग-अंग में–

 

कब तक चलता रहेगा, तुम्हारी ऐसी दानवीवृत्ति ।

जयचन्दों अब बन्द करो, शहादत पर राजनीति।।

क्या एकजुट नहीं रह सकते, मुसीबत के संग में–

 

छ.ग.के इस मिट्टी से, जब खत्म होगा नक्सली।

वीर शहीदों को मिलेगी, तभी सच्ची श्रद्धांजलि।।

तभी राष्ट्र खुशहाल बनेगा, जीना होगा संग-संग में-

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग) 

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