लेखक की कलम से

किसी को भाव नहीं देते…

“दिमाग से खेल खेल जाते हैं अक्सर,

अखबार की सुर्ख़ियों में रहते हैं।।

हैं यहां पर हर कोई समझदार,

पर कोई किसी को भाव नहीं देते हैं।

 

परंपरा को बोझ समझकर

संस्कार का पाठ पढ़ाते हैं।

अपनी संस्कृति को भुलाकर

दूसरे को प्रवचन सुनाते हैं।

 

हैं यहां बड़े-बड़े ज्ञानी और ध्यानी,

सदाचारी का पाठ पढ़ाते हैं

महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई

का बखान भी कर जाते हैं।

 

हर वर्ष भाषण भी देते हैं।

देश के लिए बहुत कुछ करना है।

पर अगले दिन फिर दावत उड़ा।

दूसरों में नुक्स निकालतें हैं।

 

करते हैं दान लाखों का,

अखबार में ख़बर छपवाते हैं।

पर अपने ही बंधु बांधवों का,

हक छीनकर महान् बन जाते हैं।।”

 

-अम्बिका झा

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