लेखक की कलम से

ऐसी थी मां …

मां मेरी शिक्षित थी!

मूर्त-अमूर्त भावों को सहज ही पढ़ लेती!

काम-धाम के साथ संस्कार का भी पाठ पढाती!

माँ मेरी पूर्ण थी!

हर विद्या में निपूर्ण थी

लुकाना-छुपाना नहीं वे जानती घोर

पाप उसे वे मानती!

झगड़ लेती यदि किसी से,

तो सर्वदा माफी मुझसे ही मंगवाती!

दोष सर्वदा स्वयं में खोजो,

यही पाठ नित्य नियमित सिखलाती!

इसे ही सफल जीवन का महामंत्र बताती!

मां मेरी शिक्षित थी!

मूर्त-अमूर्त भाव को सहज ही पढ़ लेती!

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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