लेखक की कलम से

दोस्त अब दोस्ती से ख़तरा है…

ग़ज़ल

 

 

दिल को उम्मीद हीं से ख़तरा है

बस मुझे ज़िन्दगी से ख़तरा है

 

बाद बहुत बाद मैंने ये जाना

मुझको तो ख़ुद मुझी से ख़तरा है

 

इश्क़ भी आशिकी का दुश्मन है

इश्क़ को आशिकी से ख़तरा है

 

जो तेरे दर्द के मसीहा हैं

उनको तेरी ख़ुशी से ख़तरा है

 

है मेरा ध्यान उस गली की ओर

मुझको अब जिस गली से ख़तरा है

 

दिल है दर्द दर्द ही दिल है

दर्द को बे-दिली से ख़तरा है

 

तुम लड़की बहुत रूमानी सी

मुझको बस एक तुझी से ख़तरा है

 

दिल तू दिल से रहीओ होशियार

दिल को दिल्लगी से ख़तरा है

 

हम जो हैं कहीं नहीं हैं मग़र

हमें मौज़ूदगी से ख़तरा है

 

जिद्द छोड़ो तुम मान लो मेरी

दोस्त अब दोस्ती से ख़तरा है

 

इसे कोई बात समझ नहीं आती

इसे तो बस इसी से ख़तरा है

 

उसे भी बात ये बताओ ज़रा

उसे भी बस उसी से ख़तरा है

 

ये बता कर मुझे गई वो कहीं

लड़की को शायरी से ख़तरा है

©चन्दन राज, गया बिहार

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