लेखक की कलम से

कुछ तो करो ना …

व्यंग्य

 

 

विश्व में कोरोना महामारी से हाहाकार मचा है। बहुत प्रगतिशील देश भी इसके कहर के आगे थरथर कांप रहे हैं। मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व है। मेरा भारत कोरोना से बिलकुल नहीं डरता। कोरोना खुद परेशान है कि उसका भारत में कोई दबदबा ही नहीं बना। कोरोना भारत में पहुंचा ही था कि लोगों ने, थालियां, बाल्टियां, ड्रम, परात, कटोरी, सिलेंडर, घंटियां, घण्टे, पीपे, दरवाज़े बजाने शुरू कर दिए। कोरोना किंगकर्तव्यविमूढ़ खड़ा देखने लगा कि क्या यह उसका स्वागत हो रहा है। मूर्ख लोग सड़कों पर उतर आए। बड़े -बड़े जलूस निकालने लगे। कुछ महामूर्ख तो जलूस में ऐसे नाचने लगे मानो उनके पिताजी घोड़ी चढ़े हों। बेचारे लोग भूल गए कि कोरोना एक बीमारी है जिससे बचने के लिए उन्हें घर पर रहना है। हमारा देश साधू, बाबाओं और भूत-प्रेतों का देश है। यहां की भोली जनता को लगा कि कोरोना कोई भूत है जो उनके द्वारा किए गए शोर से भाग जाएगा।

हमारे मोहल्ले की एक आंटी अपने आंगन में खड़े होकर परात व कड़छी पीटते हुए बोल रही थी –

जलतू जलाल तू, आई बला को टाल तू

कोरोना के भूत को भगा तू

भागो -भागो ! हत हत हत !

उसे देखकर एक अन्य औरत भी गिलास -चम्मच पीटते हुए नाचने लगी और कहने लगी –

गो कोरोना गो ! कोरोना गो बैक ! कोरोना वापस जाओ !

यह सब सुन कर पास वाले घर में छह महीने से बीमार दादाजी भी बाहर आ गए। उनके बाप -दादा आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए थे। उन्हें बीमारी की स्थिति में यह लगा कि देश आज़ाद होने वाला है। आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने की गरज से वे ज़ोर -ज़ोर से बोलने लगे –

“साइमन गो बैक ! साइमन वापस जाओ ! भारत माता की जय ! वंदे मातरम ! अंग्रेज़ो भारत छोड़ो ! हम आज़ादी ले कर रहेंगे !”

अब कोरोना विदेशी। बाहर से आया हुआ। उसे तो हिंदी समझ ही नहीं आती। वह समझ ही नहीं पा रहा कि हो क्या रहा है ?

एक झंझावात अभी खत्म नहीं हुआ था कि एक दिन अचानक लोगों ने दिवाली मनानी शुरू कर दी। औरतें थालियों में दीए जलाकर घरों से बाहर निकल आईं। जिस तरह करवाचौथ को निकलती हैं। लोग जलती मोमबत्तियों के साथ सेल्फी लेने लगे। इतनी दीए व मोमबत्ती के साथ तस्वीरें तो दीपावली को फेसबुक पर नहीं डाली गईं थीं जितनी अब डालीं गईं। एक औरत तो दोनों हाथों में दीए लिए नाचने लगी और कोरोना के नाम का गीत गाने लगी। लोग कैंडल मार्च निकालने लगे। एक महापुरुष तो यहां तक कह रहे थे कि यह बस जादू है। इस तरह कोरोना खत्म हो जाएगा। एक महाशय तो मुंह में पेट्रोल भर कर आग के गुब्बारे निकालने लगे। कोरोना को शायद उनका करतब पसंद नहीं आया और वे आग में झुलस गए। लोग पटाख़े चलाने लगे। जो पटाखे दिवाली पर बैन थे, वे कोरोना के आने पर स्वतः ही बजने लगे। नासा ने धरती का चित्र खींचा तो उसमें भारत जगमग करता नज़र आया। बेचारा कोरोना असमजस में है कि लोग उसका स्वागत उसी तरह कर रहे हैं जिसतरह रामजी का बनवास से लौटने पर हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा कि जहां बड़े-बड़े देशों के प्रधानमंत्री अपनी जनता को मरते देख आंसू बहा रहे हैं, वहां भारत में उत्सव का माहौल क्यों है ? क्या कोरोना से इन्हें डर नहीं लगता ?

भला हो सरकार का कि उसने पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया। परन्तु हमारे वीर नागरिक घर में टिक ही नहीं पा रहे। वे कोरोना से लड़ने, उसका सामना करने बाहर आ रहे हैं। सरकार लाख समझा रही है कि कोरोना अदृश्य शत्रु है परन्तु हमारे वीर कहां मानने वाले हैं। उन्हें रोकने के लिए पुलिस कर्मी सड़कों पर गश्त कर रहे हैं। उन्हें लाठी से समझा कर घर भेज रहे हैं। कई महान देशभक्त तो पुलिस का डट कर सामना कर रहे हैं। उन्हें मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं। उन पर पत्थर फेंक रहे हैं। उनकी गाड़ियां तोड़ रहे हैं। कोरोना हैरान है कि उसकी तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं है। ये लोग तो आपस में ही लड़ -मर रहे हैं। इन्हें मारने के लिए कोरोना की तो ज़रूरत ही नहीं। कोरोना कोने में दुबक कर सारा तमाशा देख रहा है।

कल शर्माजी कह रहे थे -“कोई धर्म बुरा नहीं है। बुरी है तो कट्टरता। सभी धर्म इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं परन्तु लोग धर्म के नाम की लठ लेकर न जाने किस जंग में कूद रहे हैं। “

कोरोना इंसान से इंसान में फैलता है। यदि हम घर में रहें और एक दूसरे से न मिलें तो इसे फैलने से रोका जा सकता है। कोरोना तब अवाक रह गया जब देखा लोग स्वयं ही उसे फैलाने को मरे जा रहे हैं। वे एक दूसरे से गले मिल रहे हैं ताकि मानव बम बन सकें और दूसरों को मार सकें। लोग फलों -सब्जियों को चाट रहे हैं। संक्रमित चीज़ें दूसरों के घर पहुंचा रहे हैं। संक्रमित होकर छिप रहे हैं। डाक्टरों के काम में बाधा डाल रहे हैं। न इलाज करने दे रहे हैं, न करवा रहे हैं। धर्म युद्ध का आह्वान कर रहे हैं। कोरोना सोच रहा है कि यहां धर्म खतरनाक है ? आदमी खतरनाक है ? या वह स्वयं ज्यादा खतरनाक है ?

कोरोना के कारण कर्फ्यू से पूरा भारत बंद है परन्तु हमारे साहसी देशवासी बाहर घूमने को इतने आतुर हैं कि झूठे पास बनवा रहे हैं। बड़े अफसरों से सिफारिश करवा रहे हैं। रिश्तेदारों से मिलने जा रहे हैं। उनके मन में इतना प्रेम भाव उमड़ रहा है कि पूछो मत। एक औरत कोरोना से संक्रमित हो गई। जब स्वस्थकर्मी उसे लेने गए तो उसके परिजनों ने उस वैन को ही तोड़ दिया जो उसे लेने गई थी। डाक्टरों पर हमला किया। उनका कहना था -“हम मर जाएंगे पर अपनी माताजी को ले जाने नहीं देंगे। खून की नदियां बहा देंगे। “

कोरोना कई देशों में घूम आया पर ऐसा सच्चा प्यार उसे कहीं देखने को नहीं मिला। उसका भी मन भर आया।

घर के पास एक विपक्षी नेताजी रहते हैं। वे कह रहे थे -“देश सारी समस्याओं को छोड़ कर कोरोना की बात करने लगा है। अन्य विषय तो जैसे समाप्त ही हो गए। सरकार के सामने जो दुनिया भर के सवाल मुंह बाए खड़े थे, अब उनसे बचाव संभव है। सब इल्ज़ाम अब कोरोना के सिर। देश की हर स्थिति का ज़िम्मेदार अब कोरोना को बना दिया जाएगा। “

यह सब सुनकर कोरोना सदमे में है। ऐसा व्यवहार तो उसके साथ किसी और मुल्क ने नहीं किया। कोरोना अपनी मातृभूमि के शासकों को फोन कर गिड़गिड़ा रहा है -“मुझे वापस बुला लो !मुझे भारत से बचा लो ! कुछ तो करो ना !!!

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़

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