लेखक की कलम से

ग़लत है ….

खुद का बेकसूर होना कितना ग़लत है

लोगो को सच बताना कितना ग़लत है

 

अपना हाल अपने ही जानते है

तुम पराए हो गए कितना ग़लत है

 

हर बात पे तुम्हारी राय लेता था

तुम नाराज हो कितना ग़लत है

 

पैसों कि इज्जत पैसे वाले करते है

मै तो गरीब हूं कितना ग़लत है

 

© विशाल गायकवाड, वर्धा महाराष्ट्र

Back to top button