लेखक की कलम से

तूफान में दस्तक

कहानी

बाहर के सारे दरवाज़े बंद थे और अन्दर कमरे में अशांति थी। शान्ति की तलाश जारी थी और हर एक का चेहरा घबराया घबराया सा था। शायद कि वह किसी बड़े खतरे के इंतज़ार में थे। अचानक बाहर के दरवाज़े पे दस्तक हुयी  और सब लोग हैरान हो कर खामोश हो गए।
दस्तक होती रही और लोग सुनते रहे क्योंकि सब डरे हुए थे। बाहर का दरवाज़ा खुलने पर कहीं कोई तूफ़ान न नाज़िल हो जाये। मगर तूफ़ान का रास्ता कब रोका जा सकता है। तूफ़ान को जब आना होता है तो आ कर रहता है। तूफ़ान को आगे बढाया जा सकता है। मगर तूफ़ान को रोक लेना अब तक संभव नहीं हो सका। दरवाज़े पे दस्तक तेज़ होती जा रही थी और महसूस होता था कि  दरवाज़ा टूट जायेग। सारे लोग डर के मारे ऊपर की मंज़िल पर जाने लगे और बाहर दस्तक की आवाज़ तेज़ होती गयी। लोगों को महसूस हुआ कि वह ग़लती कर रहे हैं। दरवाज़ा खोल ही देना चाहिए। मगर दरवाज़ा खुलने पर बचाव की क्या सूरत होगी इस पर किसी ने विचार नहीं किया। चिंतन करने की फुर्सत भी किसे थी ।


कमरे के अन्दर से एक व्यक्ति ने दरवाज़े पर आ कर पूछा …… कौन है ? दस्तक रुक गयी  मगर कोई जवाब नहीं मिला क्योंकि दरवाज़े पर दस्तक देने वाला अजनबी था और अजनबी के पास परिचय के लिए कुछ नहीं था कि वह अन्दर वाले को बता सकता कि वह कौन है।
ख़ामोशी ने जिज्ञासा, विस्मय और भय को बढ़ा दिया, मगर एक व्यक्ति के आगे बढ़ने से इतना ज़रूर हुआ था कि अन्दर के सारे लोगों को ताक़त मिल गयी थी और वह भी उसके पीछे पीछे आ कर दरवाज़े के पास खड़े हो गए।
एक ने कहा …….. दरवाज़ा खोल दो। दुसरे ने कहा …….साला कोई जवाब ही नहीं देता। तीसरे ने कहा .. वह अकेला लगता है  हमलोग इतने सारे हैं वह क्या कर लेगा हमारा। चौथे ने कहा … ज़रा गौर कर लो कहीं किसी परेशानी में हम न पड़ जाएँ। पाँचवे ने कहा …….क्या हम सब मिल कर परेशानी का मुकाबला भी नहीं कर सकते ,खोल दो दरवाज़ा क्या कर लेगा, मृत्यु सत्य है मृत्यु पर हमारा विशवास है, मृत्यु तो अपने समय पर ही आएगी फिर हमें डर कैसा ? छठे ने कहा ……….अपने हित को ध्यान में रखना भी ज़रूरी है, परामर्श से काम लो यार !
अभी यह कानाफूसी हो ही रही थी कि दस्तक फिर शुरू हो गयी और अन्दर वालों में से एक ने हिम्मत कर के दरवाज़ा खोल दिया।


बाहर खड़ा भिक्षुक अपना अजनबी चेहरा लिए हुए हाथ फैलाता हुआ अन्दर  की तरफ अपना पाँव बढाने लगा, और अन्दर के लोग पीछे हटने लगे। भिक्षुक कुछ अलग मुखाकृति का आदमी था। इसके चेहरे पे एक कशिश थी। परम पूज्य था वह। लोग पीछे हटे और भिक्षुक ने उन्हें ढाडस  दिलाया।
घबराओ नहीं मैं भी इन्सान हूँ तुम्हारे ही जैसा मैं तुम्हारा कुछ लेने नहीं आया हूँ . कुछ देने के लिए आया हूँ . तुम बेचैन थे शांति के लिए रास्ता तलाश कर रहे थे . भौतिकता के संसार में सिमटे सिमटाये लोग मैं तुम्हें बाहर के संसार का निमंत्रण देने आया हूँ।
तुम सब के अन्दर एक शक्ति स्रोत है जो स्वयं को प्रकट करने हेतु फूटना चाहता है। स्वयं को पहचानो तुम कौन हो
तुम क्यों हो ?
तुम्हें इस धरती पर क्यों भेजा गया है ??
तुम कुछ हो तभी तो हो कुछ न होते तो बना कर इस धरती पर भेजे क्यों जाते। तुम्हें तो  इस संसार में सबसे सुन्दर बना कर भेजा गया। मगर अफ़सोस की तुम तुम नहीं रहे। वर्तमान की तरफ पीठ कर के बैठ गए हो और आने वाले कल की सोच रहे हो … चलो मेरे साथ आगे पाँव बढाओ। घबराओ नहीं तेज़ हवाओं की चोटें लगेंगीं। थपेड़ों को सहना पड़ेगा। आ जाओ मेरे साथ मैं तुम्हारा नेतृत्व करूंगा –
सारे के सारे लोग जो घबराये हुए थे एक सुकून का एहसास करने लगे। मगर शंका अब भी बनी हुयी थी। संदिग्ध दृष्टि से लोग अब भी भिक्षुक को घूर रहे थे-
शंका के चौबारे पर खड़े लोग –
उभरती हुई संदिग्ध दृष्टि –
दृष्टि अब किसी के पास है कहाँ – सब दृष्टिहीन हो चुके है।
शायद हाँ !
शायद नहीं !!
मगर एक सवाल अपनी जगह क़ायम था कि क्या यह इनकी अपनी दृष्टि थी . वह दूर दृष्टि जो दादी माँ और नानी माँ के पास हुआ करती थी, गाँव के पंडित श्याम दत्त मिश्र के पास हुआ करती थी। वह दृष्टि तो अब लुप्त होती जा
रही है, और हम शायद दृष्टिहीन होते जा रहे हैं – अंधे हो गए हैं – आँखों पर काला चश्मा लगाये भागे जा रहे हैं । तेज़ रफ़्तार जिंदगी के साथ
………..
इसके पीछे चलना कहाँ तक मुनासिब होगा – यह शांति कहाँ से दे पायेगा  इसके पास है क्या? चेहरा भी है तो हम सब से जुदा।.पता नहीं कहाँ ले जायेगा। किस मंज़िल पर ले जा कर छोड़ेगा हमें …….. मुझे कुछ नहीं चाहिए तुम वापस जा सकते हो – एक ने हिम्मत करके कहा।
दुसरे ने कहा… – नहीं नहीं तुम जा सकते हो। तुम क्यों चले आये। तुम्हें कैसे पता चला कि हम सब शान्ति की तलाश में हैं।
तीसरे ने कहा …. यह कोई बहुत बड़ा जादूगर लगता है। हमारी बातों को जान चूका है। और अब किसी भ्रष्ट रास्तों पर ले जाना चाहता है . नहीं हम नहीं जायेंगें तुम अकेले जाओ।
नवागत को कोई सूत्र अब तक नहीं मिल पाया था जिन से वह इनको विश्वास में ले पाता। उस ने कहा शक मत करो देखो मेरी तरफ देखो, मैं तुम्हारा कुछ लेने नहीं आया हूँ, कुछ देने आया।
एक ने फिर  पूछा ……….’ तुम को कैसे मालूम हुआ कि हम सब घबराये हुए हैं और शान्ति कि तलाश में हैं। नहीं बाबा ! अपना रास्ता लो हमें। सुख शान्ति नहीं चाहिए …. हम दरवाज़ा बंद करेंगें।


नवागत भिक्षुक ने कहा ….. दरवाज़ा बंद नहीं होता मेरे प्यारे ! दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता। एक दरवाज़ा बंद करने से कई दरवाज़े खुल जायेंगें । और हर दरवाज़ा तुम्हें नई आवाज़ देगा और उस वक़्त फैसला तुम्हारे बस में नहीं होगा। तुम पागल हो जाओगे। तुम्हारे सोचने कि शक्ति जवाब दे जाएगी। एक ही रास्ता है दरवाज़ा खुला रहने दो और फिर देखो प्रकृति क्या चाहती है। क्या मांगती है हम से …… हम क्या चाहते हैं …..तुम क्या चाहते हो?  ये वृक्ष एये पहाड़, ये चाँद. तारे ये झरने तुम से क्या कह रहे हैं …… और ये आंधी।

  अभी ये बातें हो ही रही थीं कि बाहर आसमान में बदल उमड़ आये और चरों तरफ अँधेरा छा गया। तेज़ हवाओं ने दरवाज़े के पट तोड़ डाले और बड़े ज़ोरों कि गरज आसमानों में पैदा हुई।
तूफ़ान आ गया ! तूफ़ान आ गया !!
हर तरफ आंधियां ही आंधियां हैं “ किस कमरे में जाओगे – भिक्षुक ने कहा। किस दरवाज़े को बंद करोगे.. भिक्षुक ने प्रश्न किया। कहाँ पनाह लोगे मेरे प्यारे ! तूफ़ान बढ़ता जा रहा है.. जल्दी फैसला करो। अब तो दीवारें भी हिलने लगी हैं। ऐसा न हो कि तुम्हारा ये “ घर” ध्वस्त हो जाये और तुम
………..
कहो कहाँ है शांति ‘ कहाँ है सुख?
अब तो कानन विस्तृत में तूफ़ान का मुकाबला करना तुम्हारा मुक़द्दर बन चूका है ………. चलो मैदान की तरफ हम भी निकलें , तुम भी निकलो। प्रकृति करवट ले रही है  पुराण और इतिहास के मूल्य आज सामने आ रहे हैं
पल  में प्रलय होने को है। बादलों की गरज, तेज़ हवाओं से पैदा होनेवाली भय ….. अस्त व्यस्त जिंदगी ……… व्याकुलता….. विनाश !
चलो चलो वह देखो अनंतर की दीवार गिर पड़ी । आगे का रास्ता अभी खुला है बंद नहीं । सारे लोग भिक्षुक के पीछे पीछे ख़ामोशी के साथ चलने लगे कि इस वक़्त बचाव का बस यही एक रास्ता था । भिक्षुक इन्हें ले कर आगे बढ़ता रहा और तूफ़ान की उस सरहद पर ला कर खड़ा कर दिया जहाँ शोले बरस रहे थे। दिमाग जल रहा था। आदमी आदमी नहीं रह गया था । तूफ़ान कब थमेगा कौन जनता है। तूफ़ान की अपनी फितरत है . यह प्रकृति का कौन सा मिज़ाज है ……. भिक्षुक यहाँ क्यों आया था।

वह हमें कौन सा नया अर्थ समझाने आया था , हम आंधी और तूफ़ान का मुकाबला करते रहते हैं , कोई भिक्षुक कोई सन्यासी, कोई सूफी आता है, नयी रौशनी फैलती है और ज़माना फिर आगे बढ़ने लगता है । भिक्षुक अब भी घूम रहे हैं .मगर हमारे घरों के दरवाज़े बंद हैं, दस्तक हो रही है मगर हम नवागत भिक्षुक को संदिग्ध नज़र से देख रहे हैं।



हवाएं
तेज़ हवाएं
हवाएं
गर्म हवाएं

फसलों का पकना
मेघों का आकर लेना
धरती की प्यास बुझना
हवाएं
हमारे जीवन का प्रतीक
तेज़ हवाओं के थपेड़ों को सहते हुए
हमें जागना है
यही तो  जीवन की सत्य साधना है।

खुर्शीद हयात, बिलासपुर (छग)

संक्षिप्त परिचय

जन्म :28 नवम्बर 1960। साहित्यिक सफर : पहली कहानी “ अनोखी तबदीली “ वर्ष 1974 में प्रकाशित तब से ले कर आज तक कहानियाँ देश विदेश की सभी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित। कहानी संग्रह : 01 ) एड्स (उर्दू ) वर्ष 1999 में बिहार उर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित। 02 ) सूरज अभी जाग रहा है (हिन्दी ) वर्ष 2004 में। 03) लफ़्ज़ तुम बोलते क्यों हो ?  ( दिसंबर 2017 में प्रकाशित )

पुरस्कार एवं सम्मान- जनवरी 1986 में राज्यपाल बिहार द्वारा ,एशियाई सेमिनार में पुरस्कृत एवं सम्मानित। कहानी “ तूफान से पहले और तूफान के बाद “ गुरु घासीदास विश्वविध्यालय बिलासपुर के बी .ए के पाठ्यक्रम में वर्ष 2004 से शामिल। 1982 से आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से कहानी का नियमित प्रसारण। कई अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शिरकत। पत्रकार सदन , हिन्दी पत्रिका के कथा क्रम 2000 में विशेष अंक। 1985-86 में उर्दू की कई पत्रिकाओं में कहानियों पर विशेष अंक निकाले “ शायर “ मुंबई के नवम्बर 2010 मे मेरे फ़न और शख़्शियत पर विशेष अंक। छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि कवियों के काव्य संग्रह “ मंजरी ‘’ में कविताएँ शामिल। राबिन शा पुष्प की पुस्तक “ बिहार के युवा उर्दू कथाकार और डा .वहाब अशरफ़ी की पुस्तक “ बिहार मे उर्दू अफसाना निगारी “ मे कहानियाँ शामिल। 12  अगस्त 2016 को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय कथा सम्मान। मार्च 2018 मेँ कलीमुद्दीन अहमद अवार्ड। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी से ” लफ्ज़ तुम बोलते क्यों ?” पुस्तक पर पुरस्कार /सम्मान। भारतीय ज्ञान पीठ से प्रकाशित पुस्तक ” आज की उर्दू कहानी ” में कहानी ” पांच उँगलियाँ ” शामिल। रेलवे में बेहतरीन कार्य के लिए 1990 से 2018 तक सभी बड़े पुरस्कार। संप्रति : मुख्य नियंत्रक ( कोचिंग ) दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे, बिलासपुर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button