लेखक की कलम से

आत्महत्या …

 

गांव , देहात , नगर ,

और

महानगरों से लगभग रोज़ आ रही हैं

आत्महत्या की ख़बरें !

किसान हो

छात्र हो

अभिनेता हो

पत्रकार हो

या की हो कोई

चिकित्सक!

सभी करने लगे हैं आत्मदाह ….

 

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अपरिहार्य हो गया हो जैसे

समयस्याओं के आगे हाथ खड़े करना !

मनुष्य के जुझारूपन की सारी ताकत

शीर्ण हो चुकी है इन दिनों …

धराशाई हो रहे हैं

लगातार जीवनमूल्य ….

सरल लगने लगा है

ऐसे में अपनी जान दे देना ….

 

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फ़िर किसी दिन बिलखता छोड़

ये अपने ही परिवार को ….

कर्तव्यों को करके अनदेखा

सीना ताने

चुपचाप निकल जाते हैं

उसी डगर पर

जिसका कोई सिरा

वापस नहीं मुड़ता

जीवन संचेतना की ओर ..……

 

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कोई तो समझाए इनको भी

कि –

शहादत किसे कहते हैं ….

शताब्दियों तक याद किये जाते हैं

केवल वे लोग

जिन्होंने अंतिम सांस तक लड़ी हो

विपत्तियों से जंग !

बचाया हो अपना कुनबा

अपना समाज

अपने लोगों को …

 

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नहीं ….नहीं ….

भगवान के लिए

इस तरह कायर न बनो तुम!

मत रखो दिल ही दिल में

अपनी कोई बात …

उठो , जागो , देखो !

और समझो

तुम्हारे आसपास की दुनिया

कितनी आहत है

एक बस तुम्हारे समय से पहले

चले जाने के बाद ….

 

  ©अनु चक्रवर्ती, बिलासपुर, छत्तीसगढ़  

 

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