गुन्जियों की खुशबु से महका होली का त्यौहार …
गुन्जियों की खुशबु से महका, आँगन और घरवार हमारा।
आओ तुमको रंग लगा दूँ, झिलमिल हो त्यौहार हमारा।
हरियाली पर छाया यौवन, और अंबर भी है सतरंगी,
रंगों की रिमझिम वर्षा में, भीग गया संसार हमारा।
आओ चलो हम प्रेम से भर दें, एक दूजे के दिल की झोली।
होठों से बस नहीं बधाई, दिल से सबको शुभ हो होली….
मन में उत्सव अपनेपन का, मीठी बोली और भाषा हो।
घृणा का अब अंत हो चले, ऐसी सबकी अभिलाषा हो।
कोयल का मधुकर स्वर गूंजे, और अभिनन्दन हो फूलों का,
फागुन हो या कोई मौसम, खिली खिली सबकी आशा हो।
फ़ेंक दें सारी तलवारें हम, फ़ेंक दें सारे बम और गोली,
होठों से बस नहीं बधाई, दिल से सबको शुभ हो होली….
“देव” चलो हम सब आपस में, खुशियों वाले रंग मल देंगे।
कुछ तुम भी कह देना दिल की, कुछ हम भी अपनी कह देंगे।
होली के ये रंग सुनहरे, अनुभूति देंगे सृजन की,
तुम कविता से भाव बताना, हम भी ग़ज़लों से कह लेंगे।
भारत माता के मुख पर भी, पुलकित होगी हर्ष की रोली,
होठों से बस नहीं बधाई, दिल से सबको शुभ हो होली….
आओ चलो हम प्रेम से भर दें, एक दूजे के दिल की झोली।
होठों से बस नहीं बधाई, दिल से सबको शुभ हो होली। ”
©चेतन रामकिशन देव, गजरौला, यूपी