लेखक की कलम से

छोटी सी बात …

कील !
एक छोटी सी वस्तु इस पर क्या लिखना? कील छोटी पर इसके मायने बहुत बड़े हैं ,कील याद आते ही चुभन का एहसास होता है, कोई बात कील की तरह चुभ जाये तो चैन से जीने नही देती ।
जब लाला लाजपत राय के सर पर लाठी पड़ी तो वह ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की आख़री कील साबित हुई।
कील जोड़ने का भी काम करती है फर्नीचर,जूते की सोल में छुपी हुई कील इसे जोड़े रखती है और हमारी जिंदगी आसान बनाये रखती है, ऐसी ही एक कील की दरकार ने हमारे जीवन में उथल पुथल मचा दी थी .

हुआ यूं की हमारे सेंटर टेबल को साधे रखने वाली लकड़ी की कील निकल गयी और फिर क्या था इसके पाये हिलने लगे, जिस कारपेंटर की दुकान से यह टेबल लाई गई थी उसकी दुकान बच्चों के स्कूल के रास्ते में ही पड़ती थी सोचा टोकती चलू की ” भैय्या टेबल रिपेयर कर देना बस एक कील ही ठोकनी है,
उसने कहा ठीक है आ कर रिपेयर कर जाऊँगा”
पर कारपेन्टर जी प्रकट नहीं हुए और हमारे टोकने एवं उनके बहानों का सिलसिला चल पड़ा ,दिन बने हफ्ते ,हफ़्ते महीनों में बदल गए ,अब तो खीझ भी होने लगी तरह तरह के उपाय मन में आने लगे ,
अब तो ये टेबल ही वापस कर दूंगी ….नही चाहिए ….
एक कील के लिये कोई इतना टालता है क्या ?
खुद भी ठीक करने की कोशिश की पर फिर वही ढाक के तीन पात ।
आज तो उस कारपेंटर की खैर नहीं ,खरी खरी सुना दूँगी बस तमतमाती हुई दुकान पहुँची और कह दिया
भैय्या ” मैं बेटी को स्कूल छोड़ने जा रही हूँ तब तक आप कोई नया बहाना सोच कर रखो”
और दनदनाती हुई दुकान से निकल गयी ।सारे रास्ते सोचती रही हाय ये मैंने क्या कह दिया पता नही क्या असर होगा ,घर वापस आते वक्त मैंने दुकान की तरफ देखा भी नही .थोड़ी दूर चलने के बाद एक परछाई मेरे पीछे आ रही थी टूल बॉक्स लिए हुए और मैं विजयी मुस्कान लिए आगे चल रही थीं।

 

©वैशाली सोनवलकर, मुंबई    

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