लेखक की कलम से
अलौकिक और अद्भुत प्रेम …
आओ भूल जाएं गिले शिकवे
जो बंधे थे गांठ में
खोलकर अब प्रेम गठरी
आओ मिलकर बांट लें
यूं हीं तन्हा कब तलक
हम चलेंगे साथ-साथ
कदम मिलाकर चल चलें
डालकर हाथों में हाथ!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
आओ भूल जाएं गिले शिकवे
जो बंधे थे गांठ में
खोलकर अब प्रेम गठरी
आओ मिलकर बांट लें
यूं हीं तन्हा कब तलक
हम चलेंगे साथ-साथ
कदम मिलाकर चल चलें
डालकर हाथों में हाथ!
©लता प्रासर, पटना, बिहार