लेखक की कलम से

वह दिन भी दूर नहीं जब वन्य जीव सिर्फ तस्वीरों में ही दिखाई देंगे …

मुंबई {हेमलता म्हस्के}। आज के दौर में देखा जाए तो प्रकृति में जितने भी विनाशकारी बदलाव आ रहे हैं ये सभी मनुष्य की ही देन हैं। वन्य जीवों पर होने वाली क्रूरता मन को झकझोर रही है। जंगलों की बेशुमार कटाई, बढ़ते तापमान, पानी की कमी, वन्य क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने और शिकार की बढ़ती संख्या के कारण वन्य जीवों की मौत हो रही है। यदि इसी तरह में वन्य जीवों में कमी आ गई तो वह दिन भी दूर नहीं जब यहां के वन्य जीव सिर्फ तस्वीरों में ही दिखाई देंगे।

मनुष्य ने जितनी तेजी से प्रगति हासिल की है और जिस तेजी से कदम बढ़ा दिया है उससे कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो गईं हैं। प्राकृतिक संसाधनों का विवेक हीन दोहन – शोषण करके आज हम ऐसे कागार पर आ गए हैं कि अब प्राणिमात्र के अस्तित्व पर भी संकट में खड़ा हो गया है और साथ ही अपने लिए भी मुसीबतें बुला ली है। बहुमंजिला इमारत खड़ी करने के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। इस कारण वन्य जीवों के सामने भी संकट खड़ा हो गया है। वे मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। जिन रूपांतरित बीजों के प्रयोग का प्रचलन बढ़ता जा रहा है इनसे उत्पन्न होने वाली फसलों को खाकर वन्यजीव अपनी प्रजनन क्षमता खो रहे हैं।

बिहार के वैशाली जिले में किसान की फसल को नीलगाय की वजह से खासा नुकसान हो रहा है। किसानों की शिकायत पर बड़ी संख्या में नील गायों को मार दिया गया। चार दिनों में 300 नील गायों को गोली मारने का दावा किया गया लेकिन एक नीलगाय को मारते हुए एक ऐसा वीडियो बनाया गया जो मानवता को शर्मसार कर देने वाला था। जेसीबी की मदद से गड्ढे में नीलगाय को धकेल दिया और फिर उस पर मिट्टी डालकर उसे जिंदा दफन कर दिया। इस अमानवीय कृत्य को लेकर वन विभाग की कड़ी आलोचना की गई जबकि उन्हें बेहोश करके मारकर, जब तक उसकी मौत सुनिश्चित नहीं हो जाती तब तक उन्हें दफनाया न जाए, यह आदेश दिया गया था।

हमारे देश में विभिन्न प्रकार के जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। जीवों की 75 हजार प्रजातियां यहां पाई जाती है। इनमें तकरीबन 350 स्तनधारी, 1250 पक्षी, 150 उभयचर, 2100 मछलियां, 60 हजार कीट व 4 हजार से अधिक मोल्सक व रीढ़ वाले जीव पाए जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में जंगली जानवरों और पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और 2500 विलुप्त होने के कागार पर हैं। दलदली क्षेत्र में बिगड़ती जलवायू और बढ़ते प्रदूषण के कारण वन्य जीव और वृक्षों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

उत्तरप्रदेश और देश के और भी कई क्षेत्रों के दलदलीय क्षेत्र में “दलदलीय हिरण” पाया जाता है। इसकी प्रजाति इतनी कम हो रही है कि इसकी संख्या अब लगभग 1000 के आसपास रह गई है।

गुजरात के कच्छ क्षेत्र में जंगली गधे भी खतरे में हैं। एक सिंग वाला गेंडा भी लुप्त प्राणियों की श्रेणी में शामिल हो गया है। वर्ष 2009 में विलुप्त प्राय गंगा डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया परंतु आज तक देखा जाए तो इसकी संख्या घटकर आधी रह गई है। जिसका कारण नदी का प्रदूषण माना गया है। अब तो इस विलुप्तप्राय जीव की संख्या 2 हजार से भी कम हो गई है।

हाथी को संरक्षण हेतू वर्ष 2010 में राष्ट्रीय विरासत पशु का दर्जा दिया गया। जिनकी देशभर में कुल संख्या 26000 रह गई है। शोध अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ कि जिस क्षेत्र में वन्यजीव प्रजाति का अंत हुआ था वहीं मनुष्य की संख्या तेजी से बढ़ रही थी।

भारत में बहुत सारी एजेंसियां हैं, जो पशु शोषण और उन पर होने वाले अत्याचार को रोकने का लक्ष्य रखती हैं, लेकिन उनके इरादे नाकाम हो रहे हैं। लोगों में मानसिक परिवर्तन और जानवरों के प्रति संवेदनशीलता नहीं बढ़ रही है। बेजुबान को कानूनी तौर पर मनुष्य समान अधिकार देने के बाद भी उन पर अत्याचार आज भी जारी है।

पशु हमारी तरह उन पर किसी भी तरह के हुए अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठाते और ना ही वे कोई कायदे कानून जानते हैं। वे हम से कोई बड़े-बड़े अधिकार नहीं मांगते। मांगते हैं तो सिर्फ जीने का अधिकार… और यह अधिकार देने के मामले में भी हमारी सोच बहुत छोटी है। दुनिया में भारी मुनाफे वाले चार बड़े-बड़े गैर कानूनी व्यापार हैं, उसमें पहला वन्यजीव व्यापार है। दूसरा मानव तस्करी, तीसरा हथियार और चौथा ड्रग्स। इनमें वन्यजीव तस्करी एक ऐसा व्यापार है जिसमें अंधाधुंध कमाई होने के कारण पिछले दशकों में वन्य जीवों की भारी संख्या में हत्या की गई।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 (क) (6) में वन्यजीव की रक्षा करना भारतीय नागरिकों का मूल कर्तव्य बताया गया है। इसी आधार पर पशुओं पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिए 1972 में भारतीय वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम बनाया गया परंतु विडंबना यह है कि इस अधिनियम का प्रभाव व्यवहारिक रूप में दिखाई नहीं पड़ रहा है। यह भी उतना ही कड़वा सच है कि जितने अधिक प्रयास वन्य जीवों को बचाने के लिए हो रहे हैं उतनी ही तेजी से वन्य जीवों की हत्या भी बढ़ रही है। इसी को लेकर 20 दिसम्बर 2013 को यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को विश्व वन्य जीव दिवस के रूप में मनाया जाए, जिस से वन्यजीव व वनस्पतियों के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़े। वन्यजीव संरक्षण किसी एक के प्रयास से संभव नहीं है, सभी की मेहनत से ही हम पर्यावरण और वन्यजीवों को बचाने में कामयाब हो जाएंगे।

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