लेखक की कलम से

बेचैन आँखें …

गजल

 

बेचैन आंखें तेरा ही,

रास्ता देखती है,

कब आओगे तुम,

वो मंजर ढूंढती हैं,

शबनमी शाम के पहरा में,

वो चांद बादलों से झांकता है,

वो तुम ही तो नहीं,

मेरा दिल यह कहता है,

सब है यहां मेरे पास,

दरमियां में तुम ही नहीं हो पास,

चले आओ कहीं से तुम,

ये हवाएँ कहती हैं,

देखो जुगनू भी चमक कर,

तुझे राह दिखाती है,

हो रहा है अंधेरा,

न जाने कब तुम आओगे,

ये दिल की तपिश,

दिया बन जल और बुझ रहा है,

यह तन्हाई का आलम,

काटे नहीं कटती है,

ये टिमटिमाते तारे,

तुझे ही ढूंढती है,

इन सब नजारों की चमक,

ओ हमदम तुझसे ही तो है…….।।

©पूनम सिंह, गुरुग्राम, हरियाणा

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